पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२८२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस शब्दका अर्थ पूछा तो उन्होंने बताया कि:"इसका अर्थ है ऐसे लोग, जो आपकी मर्जीके मुताबिक काम करने को तैयार हों।" उन्होंने दीवानीके मुकदमोंकी भी सुनवाई की और सजाएँ सुनाईं और इस प्रकार मन्दिरकी जायदादके लगानके एक मामले में फैसला किया। उन्होंने उन लोगोंको भी दण्डित किया जो उनकी रायमें उद्दण्ड या उद्धत स्वभावके थे। उन्होंने खुद कहा कि ऐसे लोगोंको उन्होंने मार्शल लॉके अन्तर्गत विहित दण्डोंसे भी कुछ कड़े दण्ड दिये, क्योंकि उनके विचारसे जो लोग “स्वभावसे ही उद्दण्ड हों या जाने-माने उद्धत लोग हों”, उनके लिए मार्शल लॉ द्वारा विहित दण्ड पर्याप्त नहीं थे। साहबजादा सुलतान अहमदने उनसे पूछा कि क्या यह सब करके उन्होंने जनरल बनियनके अनुदेशोंका अतिक्रमण नहीं किया। कप्तान डोवटनका खयाल था कि उन्हें ऐसा करनेकी पूरी छूट थी। उनके बुलानेपर हाजिर न होनेवाले लोगोंसे बदला लेनेके लिए उन्होंने कई दस्ते भी भेजे जिनका काम ऐसे लोगोंकी जायदादमें आग लगा देनेका था। इसके बारेमें उनसे पूछा गया कि क्या उनके खयालसे मार्शल लॉमें इसकी इजाजत थी। उसका उत्तर था: "हाँ, मैं तो यही मानता हूँ।" इस प्रकार बेचारे कई लोगोंका मालमत्ता बिना किसी कारणके मटियामेट कर दिया गया।

कैदियोंके मुकदमोंकी सुनवाई शुरू होने से पहले ही सार्वजनिक स्थानों में फाँसीके झूले खड़े कर दिये, इस विश्वाससे कि न्यायाधीश फाँसीकी सजा देंगे। फाँसीके ये झूले उन स्थलोंके ज्यादासे-ज्यादा करीब खड़े कराये गये जहाँ-जहाँ भीड़ने ज्यादतियाँ की थीं। जिरहके दौरान यह जानकारी हासिल हुई कि सर ओ'डायरके आदेशपर ही यह किया गया था, लेकिन फाँसीके आदेशका पालन होने से पहले ही सार्वजनिक रूपसे फाँसी देना निषिद्ध कर दिया गया। हमारे खयालसे उसका कारण जान-बूझकर सार्वजनिक शिष्टाचार भंगकी इस योजनाके विरुद्ध भारतीय समाचारपत्रों द्वारा छेड़ा गया प्रचार- आन्दोलन ही था। फाँसीकी ये सजाएँ बतलाती हैं कि वे अधिकारी कितने गम्भीर किस्मके निन्दनीय कृत्य करनेपर उतारू थे। प्रान्त-भरमें मार्शल लॉ मुकदमोंके परिणाम- स्वरूप १८ व्यक्तियोंको फाँसीपर लटका दिया गया; और यदि भारत-भरमें एक जोर- दार प्रचार-आन्दोलन खड़ा न हो जाता और माननीय पंडित मोतीलाल नेहरूने जन-सेवा- की भावनासे प्रेरित होकर ऐन वक्तपर जमकर पहल न की होती तो बहुतसे अन्य लोगोंको भी फाँसीपर लटका दिया जाता। पंडित मोतीलाल नेहरूने भारत मन्त्रीको तार भेजकर मुकदमोंकी अपील की और सुनवाई पूरी होने तक मृत्यु-दण्ड स्थगित करनेके लिए कहा। सौभाग्यवश भारत मन्त्रीने हस्तक्षेप किया और वाइसरायको आदेश दे दिया कि मृत्यु-दंड स्थगित कर दिये जायें। हम इस बातपर खेद प्रकट किये बिना नहीं रह सकते कि वाइसरायने अपनी तरफसे ही इस कार्रवाईको नहीं रुकवा दिया। हमारा यह दुःख तब और भी तीव्र हो जाता है, जब हम देखते हैं कि मार्शल लॉके तहत चलाये गये मुकदमों में कानूनके आम उसूलोंको उठाकर कैसे ताकपर रख दिया गया और उनके साथ कितनी मनमानी की गई। हमें बहुत सन्देह है कि फाँसीपर लटकाये गये लोगोंमें और अब भी फाँसीका इन्तजार करनेवाले लोगों में से अनेक सर्वथा निर्दोष थे या हैं।

१. बैरिस्टर; ग्वालियर राज्यके मेम्बर फॉर अपील्स, हंटर समितिके तीन भारतीय सदस्यों में से एक।