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मद्रासके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

कोई मुकदमा ही चलाया गया था। वह तो सत्ताका एक अवैधानिक और मनमाना दुरुपयोग था । और कसूरमें ही कोड़े लगानेके अवसरपर वेश्याओंको भी वह दृश्य देखने- के लिए बुलाया गया था। (देखिए उनका संयुक्त बयान, २७९ बी०)

सन्तरियोंने दो व्यक्तियोंको तो गोलीसे ही उड़ा दिया। बाद में पता चला कि उनमें से एक गूंगा था। शायद दोनों मामलोंमें बिना किसी कारणके मनमाने तौरपर ही गोलियाँ चलाई गई थीं। हमारा खयाल है कि यदि भारतीयोंके जीवनको पवित्र माना गया होता और उच्चाधिकारियोंके दिलमें न्यायकी भावना होती तो सन्तरी लोग इतने मनमाने ढंगसे अपनी बन्दूकोंका प्रयोग न करते। हमारा खयाल है कि उन्होंने मनमानी ही की थी।

कसूरमें ही दण्ड देनेके मामले में सबसे अधिक मनमानीसे काम लिया गया था । श्री मार्सडनने कहा : "बात यह थी कि कप्तान डोवटन मुकदमे चलाकर सजा दिलाने- की ओपचारिकता में पड़ना पसन्द नहीं करते थे।" वे तो “तुर्त-फुर्त" मामले निबटाना चाहते थे। इस सनकी अफसरने विभिन्न प्रकारके जो दण्ड दिये, उनका रेकर्ड रखनेका तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। वे दण्ड देनेके लिए "लोगोंको पदक्षेप (मार्क टाइम) करते रहने और नसतीपर चढ़नेका हुक्म दे देते थे।" दण्डका कोई नया तरीका निकालने की गरजसे उन्होंने कुछ साधुओंके शरीरपर सफेदी पुतवाई।कप्तान डोवटनने इस बातसे इनकार किया कि ऐसा जान-बूझकर किया गया था। उसका कहना था कि साधुओंसे गाड़ीपर से चूना उतारनेके लिए कहा गया था और उसी काममें उनके शरीरपर सफेदी जम गई थी। हम इस कैफियतको मानने से इनकार करते हैं। हमारा खयाल है कि चश्मदीद गवाहोंने इस पूरी कार्रवाईके बारेमें जो बयान दिये हैं, वे सही हैं। दण्ड देनेका एक तरीका यह था कि तथाकथित उपद्रवी लोगोंको स्टेशनके गोदाममें जाकर भारी-भारी गाँठ ढोनेका आदेश दिया जाता था। जो लोग हर गोरेको सलाम करने में चूक जाते थे उन्हें या तो कोड़े लगाये जाते थे, या फिर जमीनपर नाक रग- नेपर मजबूर किया जाता था। कप्तान डोवटन और श्री मार्सडनका कहना था कि जनता मार्शल लॉको पसन्द करती थी और इस प्रकारके दण्डोंसे आतंकित होने या अपने- को अपमानित महसूस करनेके बजाय इनमें मजा" ही ज्यादा लेती थी। कप्तान डोवटनने जनतासे एक मानपत्र भी लिया था और एक मुसलमानको अपनी प्रशंसा कुछ शेर तैयार करनेका दण्ड दिया था। दण्डका एक तरीका रस्सी कूदना भी था। वह लोगोंको बिना रुके २० बार रस्सी कूदनेपर विवश करता था। उनका कहना है कि कमसे-कम २० व्यक्तियोंको यह दण्ड दिया गया।

श्री मार्सडनकी शिकायत है कि वकीलों द्वारा घटनाओंको बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के उदाहरणों में से एक यह था कि किसी हिन्दू वकीलने कहा कि सरकार जनताको निहत्थे मवेशियोंके समान" समझती है। हमने जिन दण्डोंका जिक्र किया है और जनताकी भावनाओंके साथ जिस प्रकारका खिलवाड़ किया गया, उनसे तो वकील द्वारा लगाया गया आरोप सिद्ध ही होता है? कप्तान डोवटनने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये लोग अपनी इच्छासे गुलाम बन गये हैं। सर चिमनलाल सीतलवाडने जब उनसे