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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

यूरोपीयोंको वहाँ देखकर उनपर शर्मनाक ढंगसे हमला कर दिया। लेकिन इसमें भी वे अधिक कुछ नहीं कर सके, क्योंकि ऐन मौकेपर कसूरके एक प्रमुख वकील, श्री गुलाम मोहिउद्दीन अपने कुछ मित्रों के साथ वहाँ पहुँच गये। श्री और श्रीमती शेरबोर्न और उनके बच्चोंको एक सुरक्षित स्थानपर पहुँचा दिया गया। ट्रेन आगे बढ़ गई, लेकिन उसमें दो अंग्रेज सैनिक भी थे। उन सैनिकोंन ट्रेनके स्टेशन पहुँचनेपर वहाँसे निकल भागने में ही अपना कल्याण समझा। वे दोनों ट्रेनसे बाहर निकले, और बिलकुल अपनी आत्म-रक्षाके लिए ही उन्होंने शोरगुल मचाती भीड़पर गोलियाँ चलाई। गोलियोंका भीड़पर अगर कोई असर पड़ा तो यही कि उसका क्रोध और भभक उठा और उन दोनों निर्दोष अंग्रेजोंको लाठियोंसे मार गिराया गया। जन-समूहने जितनी भी ज्यादतियाँ कीं उनमें शायद इन दो निर्दोष सैनिकोंकी अकारण हत्या सबसे अधिक क्रूरतापूर्ण, अमानुषिक और कायरतापूर्ण थी। अमृतसरमें जन-समूहके आचरणको यद्यपि किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता, पर डा० किचलू तथा डा० सत्यपालकी गिरफ्तारी और कैरेज-ब्रिजके निकट की गई गोलीबारीके रूपमें उसे कमसे- कम उत्तेजनाके दो कारण अवश्य मिले थे। हम इन ज्यादतियोंकी जितनी भी निन्दा करें, थोड़ी ही होगी। ये उपद्रवकारी निर्दोष हत्या करके उन्मत्त हो उठे थे। इसी उन्मादकी स्थिति में वे माल दफ्तरकी तरफ गये और उसकी इमारतोंमें आग लगा दी। अन्तमें पुलिसने गोली चलानेका आदेश पाकर उनको तितर-बितर किया।

ध्यान देनेकी बात यह है कि जन-समूहका क्रोध हर स्थानपर चन्द ही घण्टों में शान्त हो गया। कसूरमें भी चन्द ही घण्टोंमें पूरी तौरपर शान्ति स्थापित हो गई। इन घटनाओंकी जाँचके बाद हम इसी निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि जनताका क्रोध एकाएक भड़क उठा था, उसके पीछे कोई षड्यन्त्र या योजना नहीं थी। अफसरोंको गिरफ्तारियाँ करनेमें कहीं कोई कठिनाई नहीं हुई। एक भारतीय सब-डिवीजनल अफसरके स्थान- पर श्री मासँडनको भेजा गया और १६ अप्रैलको मार्शल लॉ घोषित कर दिया गया।

मार्शल लॉके प्रशासनका कार्य कर्नल मैकरेको सौंप दिया गया और उनके बाद इसका भार कप्तान डोवटनने सँभाला। इन दोनों अफसरोंने अत्याचारके नित नये तरीके ढूंढ निकालनेकी अपनी सूझ-बूझ, अपनी गैर-जिम्मेदारी और अपने आदेशोंसे प्रभावित होनेवाले लोगोंकी भावनाकी उपेक्षा करने में, कई अर्थोंमें, अपने सहयोगी अफसरोंको भी मात कर दिया। हम नीचे उनकी कार्रवाइयोंका सार संक्षेपमें दे रहे हैं, जो हंटर समितिके सामने प्रस्तुत किये गये साक्ष्यके आधारपर तैयार किया गया है। गिरफ्तारियाँ पहले-पहल १६ तारीखको शुरू हुईं। टाउन हालमें मार्शल लॉकी घोषणाके सिलसिलेमें एक परेडका आयोजन किया गया; और स्पष्टत: मार्शल लॉको लागू करने के संकेतके रूपमें, उन्होंने एक वयोवृद्ध, पुराने और सम्मानित वकील बाबा धनपतरायको गिरफ्तार कर लिया। उनकी अवस्था ६५ वर्ष है। उनको ४६ दिनतक लाहौर सेन्ट्रल जेलमें नजरबन्द रखा गया, और फिर गिरफ्तारीका कोई भी कारण बतलाये बिना १ जूनको रिहा कर दिया गया। उसी दिन २१ और लोग गिरफ्तार किये गये। उससे अगले दिन ३ और १८ तारीखको ४ तथा १९ को ४० गिरफ्ता-