पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२७८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२४६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसमें मार्शल लॉ कमीशनों या समरी अदालतों या एरिया ऑफिसर्स कोर्ट्सके नामसे प्रसिद्ध न्यायालयोंने भी पूरा हाथ बँटाया।

कसूर

कसूर लाहौर जिलेमें, लाहौर शहरसे लगभग ४० मील दूर एक महत्त्वपूर्ण कस्बा है। यह मुख्य लाइनपर एक महत्त्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। इसकी आबादी २४,००० है और यह एक काफी बड़ी मंडी है। ६ अप्रैलको कसूरमें हड़ताल नहीं हुई थी। १० तारीखको भी कोई घटना नहीं घटी। पर ११ की सुबह कसूरवालोंको श्री गांधीकी गिरफ्तारी और डा० सत्यपाल तथा डा० किचलूके देश-निकालेका समाचार मिला। इस- पर वहाँ दिनमें हड़ताल हो गई और शामके समय एक सार्वजनिक सभा हुई। भाषणोंमें कोई आपत्तिजनक बात नहीं कही गई। भाषण इतने निर्दोष थे कि सरकार चाहनेपर भी नेताओं --कसूरके प्रमुख वकीलों --पर मुकदमा नहीं चला पाई। उनके भाषणोंमें ऐसी कोई बात मिली ही नहीं जिसके आधारपर उनके खिलाफ कोई अभियोग लगाया जाता। हमें मालूम है कि सब-डिवीजनल अफसर, श्री मार्संडनने इन भाषणोंके बारेमें कुछ खींचतान करनेकी कोशिश की थी, और हंटर समितिके सामने प्रस्तुत किये गये अपने साक्ष्य में उन्होंने यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया कि वकीलोंने अपनी अनुत्तरदायि त्वपूर्ण बातोंसे और रौलट अधिनियमकी गलत ढंगसे व्याख्या करके उत्तेजनाका वातावरण उत्पन्न कर दिया था । किसीने बातचीतके दौरान रौलट अधिनियमको गलत ढंगसे पेश किया था या नहीं, यह हमें नहीं मालूम। पर इतना जरूर है कि विधान मण्डल या कार्यपालिकाके अप्रिय कार्यों के बारेमें किसी भी समाजमें थोड़ी-बहुत अति-रंजना और थोड़ी-बहुत गलत व्याख्या होना तो अनिवार्य है, फिर वह समाज चाहे जितना सुसंगठित या सुसंस्कृत हो । लेकिन हमारा खयाल है कि इन वकीलोंने अधिनियमके दुष्परिणामोंकी व्याख्या करने में जरा भी अतिरंजनासे काम नहीं लिया। अधिनियमकी चर्चाके दौरान हम पहले ही दिखला चुके हैं कि उसके दुष्परिणाम अपने- आपमें इतने घोर हैं कि उनकी अतिरंजना सम्भव ही नहीं है, क्योंकि यह अधिनियम जहाँ-जहाँ भी लागू किया जायेगा वहाँ अराजकताका साम्राज्य स्थापित हो जायेगा।

१२ अप्रैलको पूर्णतः हड़ताल रही । १२ तारीखको लोगोंकी भावना ११ तारीखसे बिलकुल ही भिन्न थी। हंटर समितिके सामने दिये गये एक गवाहके इस बयानको हम ठीक मानते हैं कि कुछ लोग अमृतसरसे आये थे, उन्होंने वहां की घटनाओंको बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था और इसीसे कसूरके मूढ़ नागरिकों या बदनाम किस्मके लोगोंमें उत्तेजना फैल गई थी। परिणामतः मध्यवर्गके कुछ लोग और कुछ ऐसे लोग, जिनके पास कोई काम-धन्धा नहीं था, इकट्ठे होकर स्टेशनकी ओर चल पड़े और उसमें आग लगाने की कोशिश की। आग बत्ती-घरसे शुरू हुई, लेकिन भीड़के इरादोंकी खबर पाकर वहाँ शीघ्रतासे जो नेता पहुँच गये, उन्होंने उसे आसानीसे बुझा दिया। इस प्रकार भीड़का प्रयास जब आंशिक तौरपर विफल हो गया तो वह सिगनल स्टेशनकी तरफ बढ़ी। वहीं ट्रेन ठीक उसी समय आकर रुकी थी। भीड़के लोगोंने सोडा- लेमनवाले डिब्बेपर हमला करके सोडे इत्यादिकी बोतलें बाहर फेंक दीं और कुछ