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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

मौका दिये बिना अपना फैसला दे दिया। उस फैसलेमें मेरी कुछ ही आपत्तियोंको बड़ी सरसरी तौरपर लिया गया है, बाकीको बिल्कुल ही छोड़ दिया गया है।

ऐसी परिस्थितियोंमें जो मुकदमे हुए वे एक मखौल-भर थे। वास्तवमें न्याय करनेका न उनका कोई मंशा था और न वह किया ही गया। मैं जिन दो न्यायाधिकरणोंके सामने गया, उनके सम्बन्धमें मेरा अनुभव बड़ा ही दर्दनाक और अपमानजनक था, इस कारण और भी कि मुझे इन दोनों न्यायाधि-करणोंके अध्यक्षोंके सामने उच्च न्यायालयके अपेक्षाकृत शान्त वातावरणमें भी जानेका मौका मिला था, और वहाँ मैंने देखा कि वे कमसे-कम न्यायालयके शिष्टाचार, उसकी शोभाका तो खयाल रखते ही थे । मार्शल लॉके अनुभवसे एक विचित्र-सी बात मेरे सामने आई। मैंने देखा कि जो न्यायाधीश उच्च न्यायालयोंके वातावरणमें न्यायिक प्रक्रियाओं और रूपोंका पूरा ध्यान रखते और अभियुक्तों तथा उनके वकीलोंकी बात पूरे ध्यानसे सुनते, उनको अपनी बात कहनेका मौका देते, वे ही न्यायाधीश मार्शल लॉके वातावरणमें न्यायिक औचित्य-को बिल्कुल ताकपर रख देते थे और जीवन-मरणके मामलोंपर विचार करते समय भी अपने-आपको न्यायाधीश-पदके लिए सर्वथा अयोग्य सिद्ध कर देते थे।

केवल नेताओंको ही गिरफ्तार करके उनपर मुकदमे नहीं चलाये गये थे। मार्शल लॉ कमीशनोंके सामने दूसरे कई लोगोंपर भी मुकदमे चलाये गये। और बहुतसे लोगोंको तथाकथित समरी अदालतों के सामने भी पेश किया गया था। हमारे पास एक विवरण भेजा गया है, जिससे हमें पता चला है कि कमीशनोंके सामने ६४ व्यक्तियों के मामले पेश हुए थे, जिनमें से आठको निर्दोष करार दिया गया था। समरी अदालतोंके सामने ३५० मामले पेश हुए थे, जिनमें से १०२ को निर्दोष पाया गया था; और ४० को कई दिनतक हिरासत में रखकर मुकदमा चलाये बिना रिहा कर दिया गया था। कुछ लोगोंको तो महीने-भरसे ज्यादा दिनतक हिरासत में रखा गया था, जैसा कि श्री मनोहरलालके साथ हुआ।

इस प्रकार लाहौरपर मार्शल लॉ थोप दिया गया था--उसी लाहौरपर जिसने कोई गलत काम नहीं किया था, जिसने अधिकारियोंको खुश करनेकी कोशिश की थी, जिसके नेताओंने अधिकारियोंकी आज्ञाओंका पालन करनेकी हर मुमकिन कोशिश की थी। मार्शल लॉ तो थोपा ही गया और वह भी एक ऐसे अधिकारीकी मार्फत जो बहुत ही निर्मम और क्रूर साबित हुआ और जिन अभागोंको उसके इस शासनके अधीन रहना पड़ा, उनकी भावनाओंका और संवेदनशीलताका उसने कोई खयाल नहीं किया। लाहौरकी जनताके हरएक तबकेका हर तरहसे अपमान किया गया । जहाँतक हमें लाहौरकी स्थानीय परिस्थितिकी जानकारी है, उसके आधारपर हम समझते हैं कि वहाँ मार्शल लॉ जारी करना बिलकुल अनावश्यक था किन्तु, उसे अनुचित तौरपर काफी समयतक लागू रखा गया, और उसपर बड़ी बेरहमी और अमानवीयताके साथ अमल करके जनताके साथ अकथनीय अन्याय किया गया ।