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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

इस आशयका जो एक आदेश जारी किया गया था, उसे में संलग्न कर रहा हूँ।(परिशिष्ट-क) ।

और न्यायालयकी ओरसे मुकदमेकी कार्रवाईका जो रेकर्ड रखा जाता था, वह बहुत ही एकतरफा होता था, जैसे कि सबूत पक्षकी ओरसे पेश किये गये मुख्य साक्ष्यको शब्दशः दर्ज किया जाता था, पर जिरहके दौरान दिये गये ज्यादातर जवाबोंको दर्ज ही नहीं किया जाता था, खास तौरसे उन जवाबोंको जो किसी कदर अभियुक्तोंके हकमें जाते थे। इस सिलसिलेमें अभियुक्तोंके वकीलोंने बार- बार इसके लिए अनुरोध भी किया, पर उसपर ध्यान नहीं दिया गया । कमिश्नरोंका जवाब अक्सर यही होता था कि वे एक समरी अदालत में बैठे हुए हैं, इसलिए उनको कार्रवाईका कोई भी रेकर्ड रखने की जरूरत नहीं, सिवाय इसके कि वे जिन चीजोंको अपने इस्तेमालके लिए जरूरी समझें दर्ज कर लें। इसीका नतीजा है कि मौजूदा रेकडोंमें देखा जा सकता है कि सबूत पक्षके गवाहोंके बयानोंसे जहाँ पत्रेके-पने रंगे पड़े हैं, वहाँ उनसे की गई जिरहका बस चन्द सतरोंमें कुछ हवाला-भर दे दिया गया है और उन चन्द सतरोंमें भी ऐसे कुछ बहुत ही बेमतलब जवाबोंको शामिल किया गया है जो कोई अहमियत नहीं रखते। उदाहरणके तौरपर में लाहौरके नेताओंके मुकदमेमें एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर मरतबअली शाहकी गवाहीको पेश करता हूँ । वह सबूत पक्षका गवाह नम्बर २९ था । उससे करीब आधे घण्टेतक बड़ी तगड़ी जिरह की गई थी, और अगर उस सबका रेकर्ड रखा गया होता तो साफ दिख जाता कि वही एक गवाह था जो पूरी तौरपर गड़बड़ा गया था। लेकिन रेकर्डमें इसके बारेमें सिर्फ दो सतरें दी गई हैं। इतना ही नहीं, कमिश्नरोंने अपना फैसला भी इसी आदमीकी गवाहीकी बिनापर दिया है।

जिरहके लिए उचित मौके भी नहीं दिये जाते थे। वकीलोंसे अक्सर कह दिया जाता था कि वे अपनी जिरह कुछ गिने-चुने सवालोंतक ही सीमित रखें, या उनकी जिरहका वक्त मुकर्रर कर दिया जाता था, फिर चाहे उनके सवाल मुकदमेसे ताल्लुक रखते हों या नहीं। सबूत पक्षके गवाहोंका काफी बचाव किया जाता था, और कमिश्नर लोग उनसे अक्सर कहते रहते थे कि वे जिन सवालोंको उलटे-सीधे समझें, उनके जवाब चाहें तो न भी दें; फिर उन प्रश्नोंका मुकदमेसे भले ही सीधा ताल्लुक क्यों न हो। कमिश्नर लोग उनको वकीलोंके साथ बेहूदगीसे पेश आनेके लिए भी उकसाते थे । बहुत बार तो जब किसी गवाहसे जवाब देते नहीं बनता था और वह बगलें झांकने लगता था तो कमिश्नर लोग उससे कह देते थे : "अगर तुमको याद न आता हो तो वैसा कह दो। गवाह लोग हमेशा इन इशारोंको समझ लेते और बड़े तपाकसे कह दिया करते थे: "मुझे याद नहीं आता।" यूरोपीय