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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अलग हर अभियुक्तसे सलाह-मशविरा करनेके लिए पाँच मिनटका भी समय नहीं मिल पाता था, और उनसे सम्राटके विरुद्ध युद्ध छेड़ने, षड्यन्त्र, आगजनी,हत्या इत्यादि जैसे गम्भीर अभियोगोंकी सफाई पेश करनेके लिए कह दिया।जाता था। आम तरीका यह था कि अभियुक्तोंको जत्थेमें, अक्सर ३०-४० के जत्थेमें, पेश किया जाता था, और इससे पहले उन्हें कभी भी नहीं बताया जाता था कि उन्हें किस अपराध में गिरफ्तार किया गया है। जब वे इस तरहन्यायाधिकरणके सामने हाजिर कर दिये जाते थे तब उनपर लगाया गया आरोप पढ़कर उन्हें सुनाया जाता था और फिर तत्काल वहींके-वहीं उनसे अपनी सफाईमें पेश किये जानेवाले गवाहोंके नाम बतलानेके लिए कह दिया जाता था।साथमें उनको यह भी उसी समय बतला दिया जाता था कि सरकार उन गवाहोंको बुलवानेको पूरी-पूरी कोशिश करेगी, पर इस बातकी गारंटी नहीं कर सकती कि हर गवाह पेश हो ही जायेगा । वादी पक्षकी ओरसे पेश किये गये सबूतका संक्षिप्त ब्यौरा पढ़कर भी उन्हें शायद ही सुनाया जाता था,और न उन्हें उनकी नकलें हासिल करनेकी इजाजत दी जाती थी। हर अभि-युक्तसे पूछ लिया जाता था कि वह अपना वकील खड़ा कर सकता है या नहीं। यदि उसने नाहीं की तो उसे बतला दिया जाता था कि सम्राट्की ओरसे नियुक्त वकील उसकी पैरवी करेगा। इसके बाद उन्हें जेल वापस भेज दिया जाता था और अगली पेशीके दिन ९ बजे सुबहसे पहले उन्हें सम्राट्की ओरसे नियुक्त वकीलसे भी नहीं मिलने दिया जाता था। अगली पेशी अक्सर अभियोग- पत्र सुनाने के दिनसे ३-४ दिन बाद रखी जाती थी। मुझे बतलाया गया है कि कभी-कभी सम्राटके वकीलोंको अगली पेशीके दिन सुबह सात बजेसे लेकर साढ़े आठ बजेतक उनके मुवक्किलोंसे जेलमें मुलाकात करनेकी इजाजत दे दी जाती थी। आम तौरपर साढ़े आठ बजे ही कैदियोंको अदालतके लिए रवाना कर दिया जाता था। अब अगर आप यह बात भी ध्यान में रखें कि चूंकि इन वकीलोंको रोज ही दस बजे अदालतमें हाजिर हो जाना पड़ता था और हर रोज अभियुक्तोंके नये-नये जत्थोंके मुकदमोंकी पैरवी करनी पड़ती थी, और इसलिए वे सिर्फ उन अभियुक्तोंसे ही कुछ सलाह-मशविरा कर पाते थे, जिनकी पेशी उसी दिन पड़ रही हो, तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि ऐसी रियायतका क्या मतलब हो सकता था। और यह भी नहीं भूलना चाहिये कि २०-२०,३०-३० अभियुक्तोंके इतने गम्भीर अभियोगोंकी सुनवाई भी साधारणतया एक ही दिनमें पूरी हो जाती थी। आसानीसे कल्पना की जा सकती है कि इन बेचारोंकी सुनवाई किस तरहकी होती होगी।

जिन लोगोंमें वकील करनेकी सार्मथ्य नहीं थी, उनकी अगर यह स्थिति थी, तो जो लोग वकील कर सकते थे उनकी स्थिति भी किसी कदर बेहतर