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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

भर था और उनके कार्योंको "युद्ध छेड़ने" के बराबर बताना भाषाका दुरुपयोग मात्र था । यह भी एक बड़े मार्केकी बात है कि न्यायाधीशोंने महज इस आधारपर अदा- लती तौरपर पंजाबमें युद्धकी स्थिति स्वीकार कर ली कि सरकारने अपनी घोषणा द्वारा मार्शल लॉ लागू कर दिया था, जब कि अलग-अलग मुकदमोंकी सुनवाई करते समय उनका स्पष्ट कर्त्तव्य था कि वे पंजाबमें विद्रोह या युद्धकी स्थितिके दावेको गलत ठहरानेवाले सबूत भी अदालत में पेश होने देते। लाला हरकिशनलालने बतलाया है कि मुकदमे और सजाके कारण उनको कितनी हानि उठानी पड़ी। उनका कहना है, “उनको अनेक तार भेजनमें लगभग १,२०० रुपये, मुकदमा लड़नेमें १२,००० रुपये और अपील करनेमें भी काफी बड़ी रकम लगानी पड़ी। पर उसका पूरा हिसाब अभी बन नहीं पाया है। व्यवसायको जो हानि पहुँची वह किसी भी तरह तीन लाख रुपये से कम नहीं बैठती। " हो सकता है, लाला हरकिशनलालके लिए इतना धन गँवा देना कोई बड़ी बात न हो, लेकिन हम कुछ लोगोंको जानते हैं, जो इन तथाकथित न्यायिक विधिसे किये गये मुकदमोंके कारण कंगाल हो गये हैं।

दस वर्षकी वकालतका अनुभव रखनेवाले एक बैरिस्टर श्री सन्तानम्‌को' प्रति- वादी पक्षकी ओरसे खड़ा किया गया था। उन्होंने हमें न्यायाधिकरणोंका एक बड़ा विशद विवरण दिया है । उनका विवरण बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए हम उसमें से एक काफी बड़ा उद्धरण पेश कर रहे हैं। उन्होंने १० अप्रैलकी गोलीबारीकी अपनी आँखों देखी घटना और मार्शल लॉके अन्य दुष्परिणामोंका वर्णन करनेके बाद आगे कहा है :

उन दिनों प्रत्येक भारतीयको, उसकी सामाजिक प्रतिष्ठाका कोई भी खयाल न रखते हुए, जिस तरह अपमानित किया गया, उसके विक्षोभकी तीव्रता उस बुःसह पीड़ाकी तुलनामें तो कुछ भी नहीं ठहरती जो सैकड़ोंकी तादादमें गिरफ्तार किये गये उन बेचारे कैदियोंकी दशा देखकर प्रत्येकके मनमें उठती थीजिनको उन दिनों मार्शल लॉके तहत बैठाये गये न्यायाधिकरणोंके सामने पेश किया जा रहा था। यह कहनेमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं कि उनको कोई भी कानूनी सहायता नहीं मिल रही थी। सरकारने तो, निस्सन्देह मानवीयताकी भावनासे प्रेरित होकर (कमसे-कम हम तो यही मानना चाहेंगे), ऐसे अभि-युक्तोंके मुकदमे लड़नेके लिए, जो खुद अपना वकील खड़ा करनेकी स्थितिम नहीं थे, हर न्यायाधिकरण पीछे एक वकील नियुक्त कर दिया था लेकिन यह एक इंतिहाई दरजेका ढोंग था, क्योंकि ऐसे वकीलोंको एक बारमें दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह व्यक्तियोंके मुकदमे लड़ने पड़ते थे, और सो भी अभियुक्तोंसे कोई सलाह-मशविरा या मुकदमोंकी कोई तैयारी किये बिना। इनमें से कुछ वकीलोंने मेरे सामने खुद कबूल किया है कि कई मुकदमोंमें तो उनको अलग-

१. पंजाबके उपद्रवोंके बारेमें रिपोर्ट तैयार करनेके लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी पंजाव उप-समिति द्वारा नियुक्त आयोगके मन्त्री श्री के० सन्तानम् ।