पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२७०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही क्रूरतापूर्ण था। उस समाचारपत्रने अभी अपना जीवन शुरू ही किया था ओर उसके सम्पादक अपनी विनम्रता और अपने निर्दोष किस्मके धार्मिक लेखोंके लिए विख्यात थे । मार्शल लॉके दौरान स्वतंत्र विचारोंवाली पत्रकारिताका अस्तित्व ही असम्भव बना दिया गया; और 'ट्रिब्यून', 'पंजाबी' तथा 'प्रताप ने अपना प्रकाशन बन्द कर दिया ।

अब हम ऐसे दमनकी बात लेते हैं, जो अबतक उल्लिखित आदेशोंके सिलसिलेमें किये गये दमन कार्योंकी भाँति नग्न रूपमें सामने नहीं आया, बल्कि कानून और न्यायके नामपर प्रच्छन्न रूपसे किया गया। हमारा मतलब मार्शल लॉ आयोगों (कमिशनों) से है। ऐसा माना गया था कि ये आयोग सम्राट्के विरुद्ध युद्ध छेड़ने-जैसे गम्भीर अपराधोंके अभियुक्तोंके मुकदमोंकी न्यायिक विधिसे, किन्तु सरसरी तौरपर सुनवाई करेंगे। हमने लाहौरके नेताओंके मुकदमोंसे सम्बन्धित कागजातकी बारीकी से जाँच की है। कुल ११ नेताओंपर मुकदमे चलाये गये थे। उनमें से अधिकांशकी समाजमें बड़ी प्रतिष्ठा है और उनमें से कुछ तो सर माइकेल ओ'डायरके समकक्षी बनने योग्य हैं। उनमें से सात तो बैरिस्टर या वकील हैं। लाला हरकिशनलालने हमें एक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने बिना किसी झिझकके स्पष्ट कहा है कि उनपर अभियोग लगाये जानेका कारण, यदि दो टूक बात कही जाये तो, केवल यही था कि एक महाजनके रूपमें उनकी प्रतिष्ठासे सर माइकेलको ईर्ष्या थी और अन्य प्रकारसे भी उनका सम्बन्ध कुछ ऐसी गतिविधियोंसे था जो लेफ्टिनेन्ट गवर्नरको अरुचिकर लगती थीं। लाला हरकिशनलालने अपने बयान में बतलाया है कि उनके काम-धन्धेको चौपट करनेके लिए कैसे-कैसे जाल बिछाये गये। उनका कहना है कि उनके निष्कासनका तनिक भी औचित्य नहीं था और उनका मुकदमा तथा उसका फैसला बिलकुल झूठी बातोंपर आधारित था। सर माइकेल ओ'डायर उनको आमतौर पर नापसन्द तो करते ही थे, लेकिन उनकी नापसन्दगी तब और बढ़ गई जब उन्होंने देखा कि उन्हें कांग्रेस शिष्ट- मण्डलका एक सदस्य चुन लिया गया है और वे अप्रैल १९१९ के अन्तमें इंग्लैंड जाने- वाले हैं तथा उन्हें १८ और १९ अप्रैल, १९१९ को जालन्धरमें होने वाले पंजाब प्रान्तीय सम्मेलनका सभापति भी चुना जा चुका है।

उनपर तथा अन्य नेताओंपर सम्राट्के खिलाफ युद्ध छेड़नेके अभियोगपर मुक- दमा चलाया गया था। हमने अभियुक्तोंके विरुद्ध लगाये गये अभियोगका संक्षिप्त विवरण पढ़ लिया है। उसका सार यही है कि अभियुक्तोंने रौलट अधिनियमके विरुद्ध प्रचार आन्दोलन और हड़तालमें भाग लिया, भाषण दिये, लंगरखानोंको सहायता दी और ऊपर जिन सभाओंका हम उल्लेख कर आये हैं उनमें वे शामिल हुए। इन लोकप्रिय नेताओंके खिलाफ पेश किये गये सबूत और उनके मुकदमेका फैसला पढ़ने के बाद हम इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि साराका-सारा मुकदमा न्यायका मखौल-

१. इन आयोगोंने अपना काम २४ अप्रैल, १९१९ को शुरू किया था। प्रत्येक आयोगमें तीन सदस्य थे ।

२. यह शिष्टमण्डल २८ अप्रैल, १९१९ को इंगलैंडके लिए रवाना हुआ था ।