पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२६९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३७
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

प्र० - क्या यह कथन सच है कि लाहौरके किसी भागमें एक बरातके लोगोंको इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया कि उनकी संख्या दससे अधिक थी और वे सभी बरातोंकी तरह, शहरमें घूम रहे थे, और दूल्हा सहित क्या सभी बरातियों को गिरफ्तार कर लिया गया और पंडितों तथा अन्य लोगोंको कोड़े लगवाये गये?


उ०-बिलकुल सच है। और मेरी जानकारीमें यही एक घटना है, जो खेदजनक है। मैंने जैसे ही यह समाचार सुना वैसे ही उनके जुर्माने माफ कर दिये और दीवानी मजिस्ट्रेटको हटा दिया गया।

चलिए कर्नल जॉन्सनने कमसे-कम एक घटनापर खेद प्रकट करनेकी नेकी तो दिखाई, लेकिन यही एक ऐसी घटना है जिससे प्रकट होता है कि कोड़ लगवानेकी सजा कितनी खतरनाक सकती है और किस प्रकार कर्नल जॉन्सनके बिलकुल ही गैर-जरूरी आदेशोंके कारण एक सर्वथा निर्दोष जन-समुदायको घोर परेशानी और असुविधा झेलनी पड़ी।

हम कर्नल जॉन्सनके कृत्योंके बारे में अभीतक कुछ ऐसे ढंगसे विचार कर रहे थे जैसे वे सभी खुद उनके ही किये हुए हों। वैसे इसमें शक नहीं कि इनमें से अधिकांश कृत्य ऐसे हैं जिनको वे स्वयं भी कर सकते थे, लेकिन यह भी इतना ही असन्दिग्ध है कि इन सबके पीछे एक ऐसा दिमाग काम कर रहा था, और इनके पीछे एक ऐसा उद्देश्य था जो कर्नल जॉन्सनका अपना नहीं था । यह अधिकारी अर्थात् कर्नल जॉन्सन तो सर माइकेल ओ'डायरकी नीतियों और इच्छाओंका ही पालन कर रहा था। श्री मनोहरलालको इसलिए गिरफ्तार किया गया कि वे 'ट्रिब्यून' के एक ट्रस्टी थे। स्वतंत्र विचारोंके उस पत्रका दम ही घोटना था । 'ट्रिब्यून' के सुयोग्य सम्पादक, श्री कालीनाथ रायने अपने स्वतन्त्र विचारोंसे उनको एकाधिक बार नाराज किया था । सर माइकेलके ७ अप्रैलके अभद्रतापूर्ण भाषणके बारेमें "घोर अविवेक" शीर्षकसे प्रका- शित उनके लेखने रही-सही कसर भी पूरी कर दी । वह भाषण कितना घोर अविवेक- पूर्ण था । यह बादकी घटनाओंसे सिद्ध हो गया है। शिक्षित वर्गोंके प्रति उनके अनुचित आचरणको किसी भी आत्मसम्मानी व्यक्तिने उचित ठहराने की कोशिश नहीं की। जो भी हो, श्री कालीनाथ रायको बाकायदा गिरफ्तार करके उनपर मुकदमा चलाया गया और राजद्रोहात्मक लेख लिखने के अपराधमें उनको सजा सुना दी गई। हम बिलकुल बेझिझक होकर कहते हैं कि उनके लेखोंमें राजद्रोहका एक भी शब्द नहीं था। उनका मुकदमा क्या था, राजनीतिक जीवनके सामान्य शिष्टाचारका गला घोटने- से किसी कदर कम नहीं था । 'प्रताप ' के सम्पादकपर मुकदमा चलाना भी इतना

१. पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरने १३ जून, १९१९ को उनका माफीका प्रार्थनापत्र ठुकरा दिया। फिर भी उनको २७ अगस्त, १९१९ को रिहा कर दिया गया, क्योंकि सपरिषद् गवर्नर जनरलने ६ जुलाईको उनकी कारावास की सजा दो वर्षसे घटाकर तीन महीने कर दी थी।

२. राधाकिशनको अठारह महीनेके कारावास की सजा हुई थी, लेकिन बादमें लेफ्टिनेंट गवर्नरने २५ जुलाई, १९१९ को यह सज़ा घटाकर दो महीनेकी कर दी थी ।