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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कई अन्य इमारतोंकी तरह, हमारे कालेजकी इमारतको भी मार्शल लॉके नोटिस चिपकानेके लिए चुना गया था। मार्शल लॉके ऐलानके लगभग दस या इससे कुछ अधिक दिनोंके बाद हमारे कालेजके प्रिंसिपलपर एक शाम करीब ७ बजे एक 'नोटिस तामील किया गया जिसमें कहा गया था कि उस नोटिसके साथ भेजे गये राजद्रोहपूर्ण पोस्टरको लिखनेवाले का पता लगाया जाना चाहिए और दूसरे दिन दोपहरके १२ बजेसे पहले-पहले उसका नाम कमांडिंग अफसरको बतला दिया जाना चाहिए। दूसरे दिन सुबह कालेजके न्यासियों, अध्यापकों और विद्यार्थियोंकी एक सभा इस पोस्टरको लिखनेवाले का पता लगानेके लिए की गई पर उसका पता नहीं चल सका, क्योंकि वह कालेजसे सम्बन्धित किसी व्यक्तिका काम नहीं मालूम पड़ता था। हम नोटिसका जवाब तैयार कर रहे थे कि तभी खुफिया विभागके कुछ लोगोंके साथ कर्नल जॉन्सन हमारे कालेजमें आ धमके। एक न्यासी, राजा नरेन्द्रनाथ और कुछ अन्य लोगोंने कर्नलको मामला समझानेकी कोशिश की। खुफिया पुलिसके एक आदमीने कालेजमें एक जगहकी ओर इशारा करके बतलाया कि उसे वहीं दीवारपर वह पोस्टर लगा हुआ मिला था । मैंने कर्नलसे कहा कि जरूर यह सारी बात मनगढ़न्त होगी, क्योंकि पोस्टर कील ठोककर लगाया हुआ मालूम पड़ता है, पर दीवारपर कीलका कोई भी निशान दिखाई नहीं देता। इसके बाद हमने कर्नलको अपना वह जवाब भी दिखलाया जो हमने तैयार किया था। इसपर कर्नलने उसे कार्यालयमें भेजनके लिए कहा। हमने वह कर दिया। उसी दिन शामको एक दूसरा नोटिस आया कि प्रिंसिपल दूसरे दिन सुबह ९ बजे कर्नलसे मिलें। नियत समयपर प्रिंसिपल उनसे मिलने गये; लेकिन जब लौटे तो उनके साथ संगीन ताने हुए कुछ सैनिक भी थे। प्रिंसिपलसे बतौर जुर्माना ढाई सौ रुपया भरने या उसके बदले तीन महीनेकी जेल भुगतनेके लिए कहा गया था। जुर्माना उसी समय भर दिया गया ।

कुछ दिनों बाद अन्य कालेजोंके प्रिंसिपलोंकी तरह हमारे कालेजके प्रिंसिपल- को भी डिप्टी कमिश्नरकी ओरसे एक हुक्म मिला कि आन्दोलनके सरगना विद्यार्थियोंका पता चलायें और उनको दण्डित करें। उसमें यह खुलासा नहीं किया गया था कि उनका मतलब किस आन्दोलनके सरगना विद्यार्थियोंसे था। हमने उसका यही मतलब लगाया कि कुछ विद्यार्थियोंको दण्ड देना है। उनकी इस इच्छाकी पूर्तिके लिए कालेज कौंसिलकी एक बैठक बुलाई गई और कुछ विद्या- थियोंको चुन लिया गया और उनको दिये जानेवाले दण्डोंकी एक सूची तैयार कर ली गई। वह सूची न्यासियोंको दिखाकर, उनसे अनुमोदित करा ली गई। में खुद उस सूचीको डिप्टी कमिश्नरके पास ले गया; साथमें राजा नरेन्द्रनाथ- का एक पत्र भी ले गया था, जिसमें दण्डोंका जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा था