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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्ध में कांग्रेसकी रिपोर्ट

प्र०- क्या आप ऐसा समझते हैं कि आपने जो कदम उठाये, उनसे वातावरण को सुधारनमें थोड़ी भी सहायता मिली?

उ० - इतना तो अवश्य है कि मैं उसे और अधिक बिगाड़ नहीं रहा था।

प्र० - क्या आप उसमें सुधार कर रहे थे?

उ० - मेरी कोशिश उनको राजभक्त बनानेकी नहीं थी; मैं तो उनको शरारत करनेसे और आसपास के जिलोंमें जानेसे रोक रहा था।

प्र० - क्या आप कामयाब हुए ?

उ०-जी हाँ ।

प्र०-क्या आपके खयालसे यही सबसे अच्छा रास्ता है ?

उ०-मैं यही सबसे अच्छा रास्ता सोच पाया। इसके दो तरीके होते हैं-- एक तो कालेजोंको बन्द कर देना और दूसरा, उनको दण्ड देना ।

प्र०-आपकी बातका तो मैं यह अर्थ लगाता हूँ कि इस देशमें लोगों को सरकारके प्रति निष्ठावान और सदाशयतापूर्ण बनानेका सबसे अच्छा तरीका यह है कि उनसे सख्ती से पेश आया जाये । ठीक है न?

उ०-मैं इसे दूसरे ढंगसे कहूँगा।तरीका यह है कि उनको जतला दिया जाये कि इस प्रकार राजद्रोहका सन्देह हो जानेपर सजा भी दी जा सकती है।

प्र०- क्या आपके दिमागमें कभी यह बात आई कि इन हजारों विद्यार्थियों में बहुतसे सर्वथा निर्दोष लोग भी होंगे?

उ०- जी हाँ, मैंने कुछको छोड़ दिया था ।

कर्नलका खयाल था कि कुछ विद्यार्थियोंने अंग्रेज महिलाओंका अपमान किया था। इस आरोपको प्रमाणित करनेवाला कोई तथ्य हमें नहीं मिला। उन्होंने अपनी रायके समर्थन में खुद कोई प्रमाण पेश नहीं किया है, परन्तु उन्होंने इस सिल कालेजोंके प्रिंसिपलोंकी एक बैठक अवश्य बुलाई। उनके साथ कर्नलने " स्पष्ट बातचीत की। उन्होंने समुचित दंडके सम्बन्ध में उनसे अपने सुझाव देनेके लिए कहा। प्रिंसिपलोंने अपनी समझसे जो दण्ड उपयुक्त माने उनके सुझाव दिये। कर्नलने उनमें से कुछ सजाओंको अपर्याप्त माना और तत्काल ही प्रिंसिपलोंको सूचित कर दिया कि "यदि ज्यादा सख्त दण्ड नहीं दिये जायेंगे, तो कालेज बन्द कर दिये जायेंगे और विद्यार्थियोंको परीक्षाओं में नहीं बैठने दिया जायेगा । और इस ढंगसे एक हजार ग्यारह विद्यार्थियोंको दण्डित किया गया। विद्यार्थियों और उनके साथ किये गये व्यवहारके बारेमें दयालसिंह कालेजके अंग्रेजीके प्रोफेसर श्री सन्तराम ग्रोवर, एम० ए०, बी० एस-सी० का कहना है :

हड़तालके दिनोंमें मैंने अपने कालेजके विद्यार्थियोंके रवैयेमें कोई तब्दीली नहीं पाई, और मुझे एक भी ऐसा उदाहरण याद नहीं पड़ता जिसमें किसी विद्यार्थीने कोई अशोभन आचरण किया हो।