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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खयाल है, केवल १६ मील। मैंने वह फासला नपवा लिया है।" सर चिमनलालने इसपर पूछा :

और लाहौरकी उस चिलचिलाती धूपमें उनको लगातार तीन हफ्तेतक रोजाना इसी तरह चलना पड़ा।"

उ०-बिलकुल यही करना पड़ा, हाँ यदि किसीको डाक्टरी प्रमाणपत्रके आधारपर इससे बरी कर दिया गया हो तो बात दूसरी है।

प्र०-तो कर्नल साहब, इसका मतलब यह है कि आपका खयाल था और अब भी है कि विद्यार्थियों को शरारतसे अलग रखने के लिए ऐसा आदेश देना उचित था?

उ०- तब मेरी यही राय थी ।

प्र० - और क्या अब भी यही राय है ?

उ० - बिलकुल ।

प्र० - क्या आपके दिमाग में कभी यह बात नहीं आई या अब भी नहींआती कि विद्यार्थियों को तीन सप्ताहतक लाहौरकी तपती धूपमें रोजाना १६ मील पैदल चलाता उनको जरूरत से ज्यादा क्लेश देना था ?

उ०- बिलकुल कोई क्लेश देना नहीं था । कर्नल जॉन्सनने अपनी असाधारण कार्रवाईका औचित्य किस असाधारण ढंगसे सिद्ध किया है, यह हम उन्हींके शब्दों में देते हैं:

प्र० - कर्नल साहब, मैं आपसे फिर पूछता हूँ कि क्या यह बात कभी आपके दिमागमें आई कि इतने अधिक मुझे ठीक पता नहीं कितने सौ, शायद हजारों -विद्यार्थियों के साथ हाजिरीके मामलेमें आपने जिस तरहका बरताव किया उससे आपने उन युवकोंको शेष जीवनके लिए ब्रिटिश सरकारके प्रति तीव्र घृणाके भावसे भर दिया है?

उ० - आई थी, लेकिन मैं इसी नतीजेपर पहुँचा कि इन कालेजोंमें राज-द्रोहकी भावना इतनी अधिक फैली हुई है कि मैं जो कुछ भी करूंगा, उससे वे इस दृष्टिसे आज जितने बुरे हैं उससे अधिक बुरे नहीं बन सकते ।

प्र० - क्या आपके उत्तरसे में यह समक्षूं कि यद्यपि यह बात आपके दिमागमें आई थी कि आपका बरताय उनको ब्रिटिश सरकारके प्रति कटु बना सकता है, लेकिन आपका खयाल था कि वे पहले ही इतने पक्के राजद्रोही बन चुके हैं कि और अधिक कटुता बढ़ने की कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई है?

उ० - आपने जैसा वर्णन किया है, मैं उसे स्वीकार नहीं करता, परन्तु कालेजोंका वातावरण इतना बिगड़ गया था कि उससे अधिक बिगड़नेकी गुंजाइश ही नहीं रह गई थी।