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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

प्र०- यानी आप इसे तब एक उचित आदेश मानते थे और आज भी मानते हैं ?

उ० - बेशक ।

प्र० - कर्नल साहब, जैसा आपने अपनी रिपोर्टमें आभास दिया है, उस समय आपकी मनःस्थिति ऐसी थी कि आप जनताको मार्शल लॉकी ताकत दिखाने के एक मौकेकी ताकमें थे?

उ० - बात ठीक है।

प्र० - आप बड़ी उत्सुकतासे ऐसे मौकेकी प्रतीक्षा कर रहे थे?

उ० - जनताके हकमें ही।

प्र० - मैं यह नहीं कहता कि यह उनके हकमें नहीं था। हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। लेकिन आप बिलकुल तुले बैठे थे कि मौका मिले और आप लोगोंको मार्शल लॉ की ताकत दिखला दे?

उ० - सही है।

प्र०-और आपको ऐसा मौका मिल भी गया ?

उ०-और मैंने उसे हाथसे नहीं जाने दिया।

प्र० - आपने मौका हाथसे नहीं जाने दिया और इन ५०० विद्यार्थियों को चिलचिलाती धूपमें फोर्टतक पैदल चलाया ?

उ० - बात ऐसी ही है।

प्र०- और आप अब भी मानते हैं कि ऐसा करके आपने अपनी शक्तिका उचित उपयोग किया ?

उ०- बेशक । यदि जरूरत पड़ी तो कलको में फिर ऐसा ही करूंगा।

याद रखनेकी चीज यह है कि कर्नल जॉन्सनने यह निर्ममतापूर्ण उत्तर २४ नवम्बर, १९१९ को दिया था, जब संघर्ष कभीका ठंडा पड़ चुका था, और लाहौरकी कमान छोड़े उनको लगभग छः महीने हो चुके थे । यदि किसीने जान-बूझकर उनके बेशकीमती नोटिसको सचमुच फाड़ भी दिया था, तो उनका कर्त्तव्य था कि उसकी बाकायदा जाँच कराते, न कि बिना किसी सोच-विचारके सीधे प्रोफेसरों और विद्यार्थियों- को सबक सिखाने के लिए दौड़ पड़ते। पर यदि वह अति न करते तो उनका नाम ही कर्नल जॉन्सन न रहता, और इसलिए उन्होंने डी० ए० वी० कालेज, दयालसिंह कालेज और मैडिकल कालेजके खिलाफ एक साथ कार्रवाई की, उनको सजा देने के लिए नहीं बल्कि विद्यार्थियोंको “शरारतसे अलग" रखने के लिए। और जो आदेश जारी किया गया वह यह था कि सभी विद्यार्थियोंकी हाजिरी दिनमें चार बार ली जायेगी, सुबह सातसे ग्यारह बजेके बीच और शामको तीनसे साढ़े सात बजेके बीच। " और मेडिकल कालेजके विद्यार्थियोंको इस तरह दिनमें चार बार हाजिरी देनेके लिए कुल मिलाकर करीब १७ मील चलना पड़ता था, है न ? - सर चिमनलालका प्रश्न था । और कर्नल जॉन्सनने इसका जो अशिष्टतापूर्ण उत्तर दिया वह था : “जी नहीं, मेरा