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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

उन्होंने यह कभी नहीं सोचा कि इस दण्डका काफी गम्भीर प्रभाव पड़ा था। उनका उत्तर था:"मैं तो नहीं सोचता।" उनकी रायमें तो "दण्ड देनेका यही सबसे ज्यादा दयापूर्ण तरीका" था। न्यायमूर्ति रैंकिनसे उन्होंने कहा कि जनताको आतंकित करके मैंने सैकड़ों व्यक्तियोंको सजा पाने से बचा लिया। न्यायमूर्ति रैंकिनका खयाल था कि यह कहना बातको कुछ कड़े ढंगसे पेश करना है कि कानून-भंगके छोटे-मोटे मामलों में कोड़ लगानेकी पद्धतिको आम जनताके खिलाफ फौरी कार्रवाईका सबसे कारगर और सुविधाजनक तरीका मानना चाहिए। उन्होंने कर्नल जॉन्सनसे पूछा कि क्या ऐसे तरीकेको कभी-कभार कुछ विशेष परिस्थितियों में ही प्रयुक्त नहीं करना चाहिए । कर्नल साहबका उत्तर था:

मैं आपसे सहमत नहीं हूँ। आप जानते हैं कि यहाँकी आबादी बहुत अधिक है। आप यह भी स्वीकार करेंगे कि इस तरहके आदेश जारी करनेका मतलब है बहुतसी ऐसी बातोंको भी अपराध करार दे देना जो अबतक अपराधमें शुमार नहीं होती रही हैं । अब इस हालतमें यदि सिर्फ जेलकी सजा ही दो जाये तो इस विशाल आबादीपर उसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा। इस शहरके आम लोगोंके रहन-सहनका जो स्तर है उसे देखते हुए जेल उनके लिए एक बहुत अच्छी जगह है। सेंट्रल जेलमें कैदियोंको अच्छा खाना-पीना मिलता है और इसलिए कोई भी अपने-आपको आसानीसे वहाँको परिस्थितियोंके अनुकूल ढाल लेगा । इस हालतमें तो सभी लोग जेल जाना ही पसन्द करते। अतः मुझे डर था कि जेलें ठसाठस भर जायेंगी।

कर्नल जॉन्सनने एक अन्य स्थानपर कहा है कि कोड़े लगवाना १,००० सैनिकोंके इस्तेमालके बराबर है। जैसी दलीलें ऊपर दी गई हैं, उनको देखते हुए हमारी राय है कि कर्नल जॉन्सनने बर्वरतापूर्ण दण्डका औचित्य सिद्ध करने के लिए बर्बरतापूर्ण तर्क दिये हैं, और यही एक तथ्य इतना सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि वे किसी भी एसे जिम्मेदार पदके लिए उपयुक्त नहीं जैसा कि पंजाब सरकारने उनको सौंपा था। और फिर कोड़े लगवाने की सजा इतने ही लोगोंको नहीं दी गई। उन्होंने तो सिर्फ उन्हीं मामलोंका जिक्र किया है जिनका विवरण हमें समरी अदालतोंकी कार्यवाही में बाकायदे मिलता है । इनसे कहीं ज्यादा संख्या ऐसे लोगोंकी है जिनको कोड़े लगाये गये थे, पर कहीं भी उनका विवरण दर्ज नहीं है। हमने लाहौरमें लगभग १७० लोगोंके जो बयान संग्रह किये हैं, उनसे सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि सम्राट्के उच्चतम अधिकारियोंने प्रतिहिंसाकी जिस भावनाका प्रदर्शन किया वह धीरे-धीरे निचलीसे-निचली श्रेणियोंके अधिकारियोंतक भी पहुँच गई थी और उन सभीमें इतनी गहराईसे घर कर गई थी कि वह थोड़ा-सा बहाना मिलते भड़क उठती थी और जिसे बिना किसी संयमके जनताके विरुद्ध खुलकर खेलने ही दिया गया ।

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