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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया है और न किसी दूसरेको करने दिया। हम अभी आगे देखेंगे कि फौजी अदा- लतोंके जजोंकी रायमें 'लड़ाई ठानने का अर्थ दरअसल क्या था । किन्तु, यहाँ तो हम देखते हैं कि एक पुराना और विविध अनुभव प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी ऐसे गैर जिम्मेदाराना बयान दे रहा है जिसकी पुष्टिमें ऐसी कोई चीज़ नहीं मिलती जिसे कोई विवेकशील आदमी स्वीकार कर सके; वह स्वयं अपने ही कथनके अनुसार सुनी-सुनाई बातोंके आधारपर कार्य कर रहा है, और उन लोगोंके विरुद्ध, जिन्होंने अन्यायपूर्ण शासनके खिलाफ शान्तिपूर्वक प्रदर्शन करने के अतिरिक्त कोई अपराध नहीं किया, सख्तसे-सख्त कदम उठा रहा है। जिन्होंने जाने-अनजाने, उचित या अनुचित रूपसे कर्फ्यू आर्डरका उल्लंघन किया, उनमें से बहुतसे लोगोंको साधारण अपराधियोंकी भांति कोड़ोंसे पीटा गया।

महत्त्वपर कर्नल जॉन्सनन जनताको दिये गये इस आशयके एक नोटिसके बहुत बल" दिया कि यदि उनके सैनिकोंपर कहीं कोई बम फेंका गया तो यह समझा जायेगा कि उस स्थानके १०० गजके घेरेके अन्दर रहनेवाले सब लोगोंने उसे फेंका है और वे उन लोगोंको घर छोड़कर चले जानेके लिए १ घंटेका नोटिस देंगे, जिसके, बाद मन्दिरों और मसजिदोंको छोड़कर वहाँ की सब इमारतें ढहा देंगे।

उन्होंने ८०० ताँगोंको सैनिक सेवाके लिए ले लिया था। फिर यह संख्या घटा- कर २०० कर दी गई और ये २०० ताँगे तबतक रखे गये जबतक मार्शल लॉ लागू रहा। उन्होंने वे सब मोटरगाड़ियाँ भी ले लीं, जिनके मालिक भारतीय थे। उन्होंने रेलों द्वारा यात्रापर भी नियन्त्रण लगा दिया ताकि "उन सज्जनोंकी कार्यवाही नियन्त्रित की जा सके जो शहरसे बाहर जिलेमें जाकर वहाँ उपद्रव करना चाहते हों।" उन्होंने एक आज्ञा जारी कर सब लंगरखाने बन्द करवा दिये। उन्होंने खाद्य वस्तुओंके मूल्य निर्धारित कर दिये। जिनके पास बन्दूकोंके लाइसेंस थे उनसे उनकी बन्दूकें भी ले ली गईं। जिन लोगोंकी “वफादारी असन्दिग्ध" थी ऐसे लोगोंको उनके इस अत्युत्साहसे बचाने के लिए सरकारको हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने बादशाही मसजिद बन्द करवानेकी' डिप्टी कमिश्नरकी आज्ञाको पक्का कर दिया। मसजिद खोलनेकी इजाजत तभी मिली जब संरक्षकोंने यह आश्वासन दिया कि "बादशाही मसजिदमें किसी हिन्दूको नहीं घुसने दिया जायेगा। "

कर्नल जॉन्सनने समरी अदालतें गठित की। उन्होंने स्वयं भी मुकदमोंकी सुनवाई की । इस प्रकार २७७ व्यक्तियोंकी पेशियाँ हुई, जिनमें से २०१ को सजाएँ सुना दी गईं। अधिकसे-अधिक सजा थी -- २ सालकी जेल, ३० कोड़े और १,००० रुपयेका जुर्माना। समरी अदालतोंके न्यायाधीशोंने ६६ व्यक्तियोंको कुल मिलाकर ८०० कोड़े लगाने के आदेश दिये थे। सबसे अधिक कोड़े खानेवाले व्यक्तिको ३० और सबसे कमवालेको ५ कोड़े लगे। इन लोगोंको सार्वजनिक रूपसे कोड़े लगाये जाते थे, परन्तु बादमें आदेश आ गया कि उनको इस तरह कोड़े नहीं लगाये जाने चाहिए। उनकी कोई भी डाक्टरी परीक्षा नहीं कराई गई। लॉर्ड हंटरने उनसे पूछा था कि क्या

१. बादशादी मसजिद २ सप्ताहतक बन्द रही और बहुत-से मुसलमान नमाज नहीं पढ़ सके।