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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

थोड़ी या बहुत कामयाबीके साथ अपनी रक्षा कर सकते थे, वे दबाव में नहीं आये । लेकिन जो दवावका प्रतिरोध नहीं कर सके उनके बारेमें तबतक यह सम्भावना नहीं हो सकती कि वे आगे भी उसके विरुद्ध खड़े होंगे जबतक कि उन्हें अपनी शक्तिका बोध न हो जाये। किन्तु जिस प्रकार किसी दूसरेके एवज में बलिदान किया जा सकता है उसी प्रकार दूसरेके एवज में रोष भी प्रकट किया जा सकता है। जैसे-जैसे राष्ट्रीय चेतनाका विकास होगा वैसे-वैसे बदलेमें बलिदान और हिंसाका प्रदर्शन भी बढ़ेगा तथा सरकार और जनता दोनोंको चाहिए कि वे बुद्धिमानीके साथ चुनाव करें। कहना बेकार होगा कि बदलेमें किया गया आत्म-बलिदान बदलेमें की गई हिंसासे कहीं उत्तम है। हमें इसमें कोई सन्देह नहीं है कि पंजाब सरकारने ऐसे लोगोंको, जो बदलेमें आत्म-बलिदानके लिए अपनेको तैयार कर रहे थे, हिंसाके लिए उकसाया।

किन्तु लाहौरको यह श्रेय है कि उसने चुना हुआ मार्ग कभी नहीं छोड़ा। लाहौरकी जनताने जो कष्ट उठाये वे हमारी रायमें एक अर्थमें उन कष्टोंसे भी अधिक पवित्र निधि हैं जो जलियाँवाला बाग हत्याकाण्डके शिकार होनेवालोंने उठाये थे।

अब हम इन कष्टोंपर एक सरसरी नजर डालेंगे।

आफ्रिकामें शोहरत पानेवाले कर्नल जॉन्सन ५ अप्रैलसे २९ मई, १९१९ तक लाहौर मार्शल लॉ क्षेत्रके कमांडर थे। उनके शासनकी निरंकुशता इतनी व्यापक थी कि क्या ऊँच क्या नीच, सभी वर्गोंके लोग उसको लपेटमें आ गये । हजारों विद्यार्थी भी इससे नहीं बच सके। उनके लौह शासनके सामने ऊँचेसे-ऊँचे व्यक्तिको भी झुकना पड़ा।

उनके कर्फ्यू ऑर्डरको ही लीजिए। ऐसे स्त्री, पुरुष और बच्चे, जो छोटी-छोटी जगहों में रहते हैं और जल्दी सो जानेके आदी हैं, इसकी असुविधाओंको उतना नहीं समझ पायेंगे जितना कि लाहौर-जैसे बड़े शहरके निवासी । लाहौरके लिए यह असह्य हो गया । जिन लोगोंको चिकित्सा की आवश्यकता थी, उन्हें भी उसके बिना ही रहना पड़ा; और जब पंडित जगतनारायणने इस कठिनाईकी ओरसे संकेत किया तो इस अधिकारीने तपाकसे उत्तर दिया कि लड़ाई ठानी है तो इस प्रकारकी कठिनाइयाँ तो झेलनी ही पड़ेंगी। कर्नल जॉन्सन-जैसे अधिकारीको, जो एक इतने जिम्मेदार पदपर थे, एक ऐसी स्थितिके बारेमें जिसे किसी भी तर्कसे "लड़ाई ठानना" नहीं कहा जा सकता था, इस प्रकारकी तकनीकी और कानूनी शब्दावलीका प्रयोग नहीं करना चाहिए था। लाहौर, बल्कि पंजाबमें जो स्थिति थी उसके लिए इस तरहके शब्द प्रयुक्त करना भाषाको भ्रष्ट करना था लॉर्ड इंटरके सामने दी गई सभी गवाहियाँ हमने पढ़ी हैं और इस वक्तव्य के समर्थनमें कि पंजाबने “सम्राट्के विरुद्ध लड़ाई ठान रखी थी", हमें एक भी तर्क या तथ्य नहीं मिला। कर्नल जॉन्सनको यह स्वीकार करना पड़ा कि लोगोंने कहीं भी हथियारोंका प्रयोग नहीं किया। जिनके पास हथि- यार थे और जो उनका उपयोग कर सकते थे, उन्होंने न तो स्वयं उनका उपयोग

१. संयुक्त प्रान्त ( अव उत्तर प्रदेश ) विधान परिषद् के सदस्य और इंटर कमेटीके तीन भारतीय सदस्यों में से एक ।