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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लाहौरमें मार्शल लॉ लागू करना किसी भी प्रकार उचित नहीं ठहराया जा सकता। लाहौरमें जनताने जान या मालको किसी प्रकारकी क्षति नहीं पहुँचाई थी। बादशाही मसजिदकी एक सभा एक सी० आई० डी० अफसरकी जो पिटाई हुई, उसे हम सार्व- जनिक हिंसाका नाम नहीं देते। जिन लोगोंने इस अधिकारीको पीटा, उन्होंने निःसन्देह एक अनुचित कार्य किया; पर यदि इतनी-सी बातके आधारपर मार्शल लॉको उचित बताया जाने लगेगा, तब तो मार्शल लॉ एक असामान्य बात न होकर जीवनका सामान्य नियम बन जायेगा। लाहोरके किसी भी नेताका बाहरके किसी संगठनसे सम्बन्ध साबित करने के लिए खुले तौरपर कोई गवाही नहीं पेश की गई है। अमृतसर और लाहौरके बीच भी कोई सम्बन्ध साबित नहीं किया गया है। लाहौरकी जनताका हित इसी में था कि लाहौरमें शान्ति और व्यवस्था बनी रहे। लाहौरकी आबादी- में कोई लड़ाकू तत्व नहीं हैं। इसलिए लाहोरमें मार्शल लॉ जारी किया जाना न तो लाहौरकी सुरक्षाके लिए आवश्यक था और न लाहौरसे दूसरी जगह गड़बड़ीका फैलना रोकने के लिए। ऐसा करना लाहौरके नागरिकोंकी दृढ़ वफादारीपर अनुचित लांछन लगाना था। यहाँ हम ब्रिटिश संविधान और सम्राट्के प्रति वफादारीमें और अपने ऊँचे पदको कलंकित करनेवाले सम्राट्के एक अत्याचारी प्रतिनिधिका हर तरहसे समर्थन करने में जो भारी अन्तर है, उसे स्पष्ट कर देना चाहते हैं।

ये उपद्रव, वे चाहे जहाँ-कहीं भी हुए, सर माइकेल ओ'डायरके शासनके विरुद्ध अनुशासित प्रदर्शन थे । अपने शासनके प्रारम्भसे ही सर माइकेलने हर सम्भव उपाय से पढ़े-लिखे वर्ग के लोगोंको अपनेसे विमुख कर लिया। उन्होंने युद्ध-सहायताके लिए जनतासे जन और धनकी माँग करने में जो अत्युत्साह दिखाया, उससे आम जनता नाराज हो गई। हम किसी ऐसे युद्ध में सहायता देने के लिए, जिसमें साम्राज्यका अस्तित्व ही दांवपर लगा हुआ हो, जनतापर सामाजिक और नैतिक दबाव डाला जाना उचित मानते हैं। किन्तु सर माइकेल ओ'डायरने इस सम्बन्धमें शालीनताको सीमाका अतिक्रमण कर दिया; और युद्धके लिए जन और धन उपलब्ध करने में अपने दूसरे बन्धुओंको पीछे छोड़ देनेके प्रशंसनीय उत्साहमें वे अपनी मर्यादा भी भूल गये; और भूल गये कि वे इसके लिए जो तरीके अपना रहे हैं वे अच्छे हैं या बुरे । नतीजा यह हुआ कि उनके मात- हत अधिकारियोंने दुष्टतामें हेरोडको' भी मात दे दी; और जैसा कि हमने पिछले एक अध्यायमें बताया है, हमारे पास ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं जिनसे प्रकट होता है कि अधिकारियोंने, जिनका एकमात्र ध्येय सेनाके लिए सिपाही और धन जमा करना था, ब्रिटिश शासनको कलंकित कर दिया। और इस क्षेत्र में उन्हें जो भी मिला, बहुत बड़ी कीमत देकर मिला।

कहा गया है कि असन्तोष प्रदर्शनमें जो हिंसा हुई उसका कारण सैनिक भरतीको नहीं माना जा सकता क्योंकि जिन जिलोंमें जनतापर अनुचित दबाव डाला गया बताते हैं, वे जिले हिसासे बिलकुल मुक्त रहे। यह कथन निःसन्देह एक हदतक सही है। किन्तु जहाँतक यह सही है, उसका कारण बिलकुल साफ है। जो लोग

१. जूडियाका अत्याचारी शासक, जिसके शासनकाल में ईसाका जन्म हुआ था।