पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२५३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२१
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

फल नहीं निकला। डिप्टी कमिश्नरके साथ फिर एक भेंट हुई, जिसमें नेताओंने सुझाव दिया कि उन्हें एक और सभा इस शर्तपर करने दी जाये कि सभा-स्थलके आसपास कहीं भी सैनिक तैनात नहीं किये जायेंगे। पंडित रामभजदत्त चौधरीने इस बातकी पुष्टि की है कि श्री फाइसनने इस प्रकारकी शर्त स्वीकार की थी। श्री फाइ- सन इससे इनकार करते हैं। जो गवाही हमारे पास है, उससे श्री चौधरीकी बाकी पुष्टि होती है। बादशाही मसजिदमें एक विशाल सभा हुई। सभा में बहुत रोष था। केवल पंडित रामभजदत्त चौधरी अपनी बुलन्द आवाजके कारण लोगोंसे अपनी बात कह सके। बिना किसी अन्तिम निर्णयपर पहुँचे सभा समाप्त हो गई; और जब लोग- अपने-अपने घरोंको लौट रहे थे, फौजन गोलियाँ चला दीं। फौजकी ओरसे कहा जाता है कि गोली चलाना आवश्यक हो गया था, क्योंकि भीड़ उद्दण्डतापर उतारू हो गई थी । यदि यह सच है कि श्री फाइसनने फौज हटा लेनेका वायदा किया था तो वहाँ उसकी उपस्थिति ही अनुचित थी। इस बार भी कुछ जानें गईं। इससे जनताका रोष और भी बढ़ा और नेताओंका काम प्रायः असम्भव हो गया । नेताओंमें फिर विचार-विमर्श हुआ। उधर अधिकारियोंका रुख उत्तरोत्तर कड़ा होता गया। कुछ नेताओं- से भेंट करते थे और कुछसे मिलने से इनकार कर देते थे। हड़ताल चलती रही। यह खतरा हो गया था कि भुखमरी फैल जायेगी और फलस्वरूप लूट-पाट होगी। इसलिए लोगोंने लंगरखाने खोले । ये चन्देसे चलाये गये और इस प्रकार १५ अप्रैलका दिन आ गया । १६ तारीखको पंजाब के एक बड़े भारी व्यवसायी लाला हरकिशन लाल, लाहौर नगरपालिकाके एक अत्यन्त लोकप्रिय सदस्य लाला दुनीचन्द, जो लगातार बड़ी लगनके साथ सार्वजनिक सेवाका कार्य करते आये थे और पंडित रामभजदत्त चौधरी- को डिप्टी कमिश्नरने मिलने के लिए बुलाया। लेकिन वहाँ हुआ यह कि उन्हें गिरफ्तार करके निर्वासित कर दिया गया। उनके निर्वासनके तुरन्त बाद लाहौरमें मार्शल लॉ की घोषणा कर दी गई। उस समय नेताओंको डिप्टी कमिश्नरने बताया कि मार्शल लॉ की घोषणा हड़तालको तोड़ने के लिए की जा रही है और कर्नल जॉन्सनन अपनी गवाही में साफ-साफ कहा है कि यदि लोग दुकानें स्वयं न खोलते तो वे दुकानें फौजके जिम्मे कर देते और जबरदस्ती उनका माल बेचते। यह चेतावनी सचमुच दी भी गई और लाहौरके अभिमानी दुकानदारोंको फौजके दबावमें अपनी दुकान खोलनेकी जलालत उठानी पड़ी। अपने रोषकी प्रकट, अभिव्यक्तिके रूपमें हड़ताल जारी रखना लोगोंके लिए ठीक था या गलत, इस प्रश्नपर हम विचार नहीं करेंगे । किन्तु चाहे यह सही रहा हो या गलत, लोगोंने अगर अपनी दुकानें खोलने से इनकार किया तो कोई अपराध नहीं किया। मगर उन्हें सैनिक बलकी धमकी देकर दुकानें खोलनेको मजबूर करना अपराध था । और हमें लगता है कि सरकारके दृष्टिकोणसे भी राहत पानेके साधनके रूप में शान्तिपूर्ण हड़तालका तरीका हिंसात्मक उपायकी अपेक्षा लाख दर्जे अच्छा होना चाहिए।

खैर, कर्नल जॉन्सनने लार्ड हंटरके सामने अपनी राय दी कि पंजाबके दूसरे भागों में 'बगावत' न फैलने देनेके लिए लाहौर में मार्शल लॉ जरूरी था। हमारा विचार है कि