पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भीड़से भिन्न होती है और वह अधिक उद्दण्ड तथा हठी होती है। हमारी राय इससे भिन्न है। हममें से कुछने पंजाबकी एक बड़ी भीड़को लाठी घुमाते ही तितर-बितर होते देखा है । लाहौर, कसूर या अमृतसरकी भीड़ निस्सन्देह बहुत उग्र थी, किन्तु वह मामूली गोलीबारीके आगे भी नहीं टिक सकी। हमारा खयाल है कि स्वयं सरकारी साक्ष्य में इन भीड़ोंके जितनी विशाल होनेकी बात कही गई है उतनी विशाल भीड़ अगर दुनियाके किसी और हिस्से में एकत्र होती तो वह, इन भीड़ोंके विरुद्ध जितने कम सिपाही खड़े किये गये थे उतने सिपाहियोंकी एक न चलने देती। सरकारी गवाहीके आधार- पर हम जानते हैं कि १० अप्रैलको बम्बईमें एक विशाल भीड़को दो दर्जन घुड़सवारोंने उसके अन्दर घोड़े दौड़ाकर तितर-बितर कर दिया था, और उपद्रव करनेपर उतारू बम्बई- के पायधुनी मुहल्लेकी भीड़की उद्दण्डता तो विख्यात ही है। हमें तो कुछ ऐसा लगता है कि जैसे सामान्य रूप से हिन्दुस्तान में और विशेष रूपसे पंजाबमें इस तरहका कोई अलि- खित नियम हो कि पुलिस कभी भी किसी तरहका खतरा न उठाये और छोटीसे-छोटी बातपर गोली चला दे। यदि एक सभ्य सरकारकी कसौटी यह है कि वह किसी तुच्छसे- तुच्छ नागरिकके जीवनको भी सस्ता न समझे तो हमें भय है कि पंजाब सरकार इसमें बिलकुल खरी नहीं उतरी है। जिन लोगोंकी रक्षा सरकारका उत्तरदायित्व है उनके जीवनके प्रति उपेक्षाके लिए यह बहाना स्वीकार नहीं किया जा सकता कि शासक जातिके लोग शासित जातिके लोगोंकी तुलनामें बहुत ही कम हैं। कुछ अधिकारियोंने अपने आदेशोंके सम्बन्ध में किये गये प्रश्नोंके जिस अन्यमनस्कतासे उत्तर दिये हैं उससे हमारा यह विश्वास मजबूत हो गया है कि यदि अधिकारियोंने कुछ धैर्य और सूझ-बूझ- से काम लिया होता और नागरिकोंके जीवनको कुछ मूल्यवान समझा होता तो जिन गोलीकांडोंका हमने जिक्र किया है उन्हें टाला जा सकता था। हमारा यह विश्वास इस बातसे और भी दृढ़ होता है कि हमारे ध्यान में आनेवाले प्रत्येक मामले में भीड़के तितर-बितर होनेके बाद घायलोंकी देख-भालके लिए कोई भी प्रबन्ध आवश्यक नहीं समझा गया।

किन्तु अब हम फिर अपनी कहानीपर आयें। यह बात आश्चर्यजनक तो लगती है, पर जैसा हम देख चुके हैं, अधिकारियोंने घायलोंके सम्बन्धियोंको उन्हें ले जानेकी अनुमति नहीं दी। इससे बहुत कटुता और रोष पैदा हो गया । इसलिए ११ तारीखको भी हड़ताल जारी रही। नेताओं और अधिकारियोंके बीच बराबर बातचीत चलती रही। नेताओंने अपनी समस्त उत्कटताके साथ प्रार्थना की कि मृतकों और घायलोंको उन्हें वापिस दे दिया जाये, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। अधिकारी चाहते थे कि उनकी ओरसे बिना किसी प्रकारकी रियायत दिखाये हड़ताल समाप्त कर दी जाये। हमने लाहौरके नेताओंसे उनकी रिहाईके बाद कई बार भेंट की है। उन्होंने हमें अपने बयान देनेकी कृपा की है। हमारा खयाल है कि अधिकारियों द्वारा घायलों और मृतकोंको वापस न करनेपर भी, अधिकांश नेताओंने हड़ताल समाप्त करनेका पूरा प्रयत्न किया, पर इसमें वे सफल नहीं हुए। ११ तारीखको बादशाही मसजिदमें एक विशाल सभा हुई, जिसमें हड़ताल समाप्त करनेकी बातपर विचार हुआ, किन्तु कोई