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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

उसने ओ'डायर सैनिक क्लबके नजदीक जुलूसको आगे बढ़नेसे रोक दिया। लेकिन भीड़ने पुलिसकी बात नहीं मानी। गोली चलानेका हुक्म दिया गया।२-३ जानें गई और अधिक लोग घायल हुए। भीड़ पीछे हट गई। मृतकों और घायलोंको पुलिस उठाकर ले गई। रास्ते में गुजरते हुए डाक्टरोंकी सहायता अस्वीकार कर दी गई। इस प्रकार उखड़ी हुई भीड़को पुलिस धीरे-धीरे पीछेकी ओर ढकेलती हुई अनारकलीसे होकर लाहौरी गेटके बिलकुल पासतक ले गई। यहाँपर भी पुलिसने भीड़को तितर-बितर करना चाहा। जैसा कि पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट ब्रॉडवेने हंटर समितिके सामने कहा है, उन्होंने आधे घंटेसे अधिक समय तक इस सम्बन्ध में भीड़से बातचीत की। इसी बीच पण्डित रामभजदत्त चौधरीको शहरसे बाहर उनके घर, स्थितिकी सूचना मिल गई। वे भागे-भागे घटना- स्थलपर पहुँचे और उन्होंने अधिकारियोंकी सहायता करनी चाही। उनसे कहा गया कि भीड़को पीछेकी ओर मोड़ें और उसे तितर-बितर करें । पण्डितजीने अपनी ओरसे कोशिश की, पर उनकी आवाज उन्हीं लोगोंतक पहुँची जो समीप थे। इसलिए उन्होंने एक ऊँचे आसनसे भाषण दिया; पर पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट अधीर हो रहा था डिप्टी कमिश्नरको भी बुलवाया गया था, और अब वह भी आ गया था। पण्डित रामभजदत्त चौधरी डिप्टी कमिश्नरके पास पहुॅचे और कुछ समय माँगा, ताकि वे भीड़- को समझा-बुझा सकें और उसे हट जानेके लिए तैयार कर सकें। किन्तु श्री फाइसनने उन्हें केवल दो मिनटका समय दिया और कहा कि यदि उतने समयके अन्दर भीड़ तितर-बितर न हुई तो वे गोली चलानेका हुक्म दे देंगे। पण्डितजीने आपत्ति की कि इतने समय में वे भीड़के ऊपर कोई प्रभाव नहीं डाल सकेंगे, किन्तु श्री फाइसन अपनी बातपर अड़े रहे। फिर भी पण्डितजीने कोशिश की और कुछ हदतक वे भीड़के एक भागको पीछे हटाने में कामयाब भी हो गये पर श्री फाइसन अपनी बातके पक्के निकले और दो मिनटका समय समाप्त होते ही उन्होंने गोली चलानेका हुक्म दे दिया। लगभग उतने ही व्यक्ति मरे और घायल हुए जितने ओ'डायर सैनिक क्लबके नजदीक हुए थे। गोलीबारीसे भीड़ तो तितर-बितर हो गई, किन्तु लोगोंके दिलोंमें कटुता पैदा हो गई।

हमारा मत है कि दोनों बार गोलीबारीको टाला जा सकता था। भीड़ निहत्थी थी । वह कई सार्वजनिक इमारतोंके सामने से होकर गुजर चुकी थी, जिनमें क्रिश्चियन कालेजके अतिरिक्त वाई० एम० सी० ए०, अलायंस बैंक ऑफ शिमला, बैंक ऑफ बंगाल, डाकखाना, तारघर, उच्च न्यायालय और बड़ा गिरजाघर भी शामिल थे। जैसा कि अमृतसरमें हुआ, यहाँ भी अधिकारियोंने गोली चलानेसे पहले जो कदम उठाने चाहिए थे, नहीं उठाये और यह उनकी भूल थी कि उन्होंने पण्डित रामभजदत्त चौधरी को, जो सचमुच भीड़को हटानेकी भरसक कोशिश कर रहे थे, काफी समय नहीं दिया। भीड़ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। हमारा खयाल है कि हिन्दुस्तानके दूसरे भागों में समान परिस्थितियों में लोगोंकी भीड़की भावनाएँ लगभग वैसी ही उग्र होती हैं और उसमें वैसी ही दृढ़ता या कहिए कमजोरी होती है जैसी कि पंजाबी भीड़में । हम यह इसलिए कह रहे हैं कि हमने ऐसा कहते सुना है कि पंजाबकी भीड़ इस तरहकी किसी दूसरी