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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहे थे कि पंजाब में कोई हड़ताल नहीं होगी। इसलिए जब पंजाबकी राजधानी में भी ऐसी पूर्ण हड़ताल हो गई तो उन्हें बड़ा दुःख और आश्चर्य हुआ। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने कहा, इस तरहकी मुकम्मल हड़ताल करानेकी कीमत में नेताओंसे अवश्य वसूल करूँगा।

तीसरे पहर ब्रैडलों हॉलमें एक सभा हुई जिसमें हजारों आदमी उपस्थित थे। लाहौर में ऐसी सभा पहले कभी नहीं हुई थी। सर माइकेल ओ'डायरने सी० आई० डी० के सुपरिन्टेन्डेन्टको इस सभा में उपस्थित रहने के लिए विशेष रूपसे तैनात कर दिया। इस सभामें जो भाषण हुए, उनका पूरा विवरण लिखा गया। हमने उसे देखा है। यद्यपि इन भाषणोंका लहजा पुरजोर था और रौलट कानूनको रद करानेके जनताके अधिकारपर आग्रह प्रकट किया गया था, लेकिन उनमें राजद्रोहकी कोई बात नहीं थी, और निश्चय ही ऐसा कुछ नहीं था जिसका किसी भी रूपमें इस प्रकार अर्थ लगाया जाये कि वह हिंसाके लिए उकसावा था। ७ और ८ को कुछ नहीं हुआ।

९ अप्रैलको रामनवमी वैसे ही मनाई गई, जैसे अमृतसर में मनाई गई। लोग आनन्दोत्सव में लगे रहे और इस अवसरका उपयोग उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों में परस्पर भाईचारेको बढ़ाने के लिए किया। इस प्रकार पहले जिस त्योहारका स्वरूप शुद्ध धार्मिक हुआ करता था, सौभाग्यसे वह पिछले कुछ वर्षोंसे एक राष्ट्रीय त्योहारमें बदल गया है। जुलूसके साथ सरकारी अधिकारी भी थे। जहाँ-कहीं भी लोगोंको उनकी उपस्थितिका ज्ञान हुआ, उन्होंने हर्षध्वनि की।

इस प्रकार १० तारीखतक सब कुछ शान्त था, लेकिन सर माइकेल ओ'डायर नहीं। उन्हें विदित था कि श्री गांधीको डा० सत्यपालन अमृतसर आने और सत्याग्रहका अपना सिद्धान्त समझाने के लिए आमन्त्रित किया है। उनको यह भी विदित था कि श्री गांधी उनके और संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्दजीके निमन्त्रणपर दिल्ली जानेवाले थे, और ८ तारीखको बम्बईसे दिल्लीके लिए प्रस्थान कर चुके थे। सर माइकेलसे यह सहन नहीं हुआ और वाइसरायकी स्वीकृति लेकर उन्होंने पंजाबमें श्री गांधीका प्रवेश रोक दिया और पहले ही स्टेशनपर[१] उन्हें गिरफ्तार करके बम्बई प्रेसिडेंसी भेज दिया, जहाँ उन्हें नजरबन्द कर दिया गया। श्री गांधी की गिरफ्तारी और नजरबन्दीका समाचार लोगोंको १० तारीखको लाहौरमें "सिविल ऐंड मिलिटरी गजट" में छपनेपर मिला, और बिना किसी संगठन या प्रयत्नके तुरन्त दुकानें बन्द हो गईं। ४ बजते-बजते सब काम ठप हो गया। कुछ नागरिकोंने एक जुलूस बनाया और माल रोडकी ओर चल दिये। अनारकली पहुँचते-पहुँचते यह जुलूस बहुत बड़ा हो गया, किन्तु चूंकि ६ अप्रैलको पुलिसने जुलूसको माल रोडपर आगे रोक दिया था, अत: इस जुलूसका अधिकांश भाग फॉर्मन क्रिश्चियन कालेजके नजदीक रुक गया किन्तु लगभग तीन चार सौ आदमियोंने जिनमें विद्यार्थी भी थे, माल रोडपर जानेका निश्चय किया। उनका इरादा यह था कि गवर्नमेंट हाउस जायें और श्री गांधीकी रिहाईको माँग करें। जैसे ही यह पता लगा, पुलिसका एक दस्ता भीड़कें पीछेसे होकर निकला, और जुलसके आगे जाकर घूम पड़ा

  1. पलवल स्टेशनपर, जो दिल्ली और मथुरा के बीच पड़ता है।