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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्ध कांग्रेसकी रिपोट
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गतिविधि बढ़ी उसमें पंजाबने भी भाग लिया और लाहौर इसमें सबसे आगे था। जब श्री गांधीने सत्याग्रहकी घोषणा की तो पंजाबके नेता अन्तिम क्षणतक यह निश्चय नहीं कर पाये कि उसे स्वीकार करें या न करें। और वास्तव में ऐसा कोई नहीं दिखाई दिया जिसने सत्याग्रहकी शपथ ली हो--लाहौरमें तो निश्चित रूपसे नहीं। किन्तु अनशन और हड़तालकी बात दूसरी थी। उनके पालन में किसी शपथकी आवश्यकता नहीं थी और उनका लगातार चलते रहना भी आवश्यक नहीं था। किन्तु इस प्रश्नपर भी लोग अपना मत निश्चित कर पाये थे, ऐसा नहीं लगता। न वे यही मानते थे कि श्रीगांधी के आह्वानकी जनतापर क्या प्रतिक्रिया होगी। इस सम्बन्ध में उन्होंने श्री गांधीके पत्रको प्रकाशित और वितरित करनेका निश्चय किया। ज्यों ही सरकारको मालूम हुआ कि हड़ताल होनेवाली है, वह घबरा उठी। ४ अप्रैलको लाहौरमें पुलिसने एक नोटिस निकाला, जिसके द्वारा बिना पहलेसे इजाजत लिये जुलूस निकालने या सभा करनेपर रोक लगा दी गई। ५ तारीख को डिप्टी कमिश्नरने नेताओंको मिलनेके लिए बुलाया। पण्डित रामभजदत्त चौधरी[१] और दूसरे नेताओंने अपने बयानों में कमिश्नरसे हुई इस भेंटका पूरा विवरण दिया है और इसके बादकी घटनाओंका भी हाल बताया है। इस भेंटमें नेताओंने यहांतक कहा कि यदि सरकार यह चाहती है कि उन्होंने जो सभा करनेका निश्चय किया है, वह न की जाये तो वे उसका इरादा छोड़ देनेको तैयार हैं। किन्तु डिप्टी कमिश्नर निम्नलिखित शर्तोसे ही सन्तुष्ट हो गये:

(क) ५ तारीखकी शामतक सबको यह अधिकार होगा कि नागरिकोंको हड़तालके पक्ष या विपक्षमें समझायें।

(ख) ६ तारीखको हड़तालके पक्ष या विपक्ष में कोई प्रचार नहीं होगा।

(ग) सभा की जा सकती है, किन्तु कोई उत्तेजनापूर्ण भाषण न हो।

जब ६ तारीखका दिन आया तो लाहौर शहरमें पूर्ण हड़ताल थी--ऐसी, जैसी कि पहले कभी नहीं हुई थी। हजारों लोगोंने, जिनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी शामिल थे, हड़ताल रखी। लोग नदी में नहाने गये और लौटते हुए एक जुलूसमें संगठित हो गये। असलमें देखें तो यह पुलिसके उस नोटिसका उल्लंघन था, जिसका जिक्र ऊपर किया गया है। किन्तु जुलूस सर्वथा व्यवस्थित था। पुलिसने बुद्धिमानी की और हस्तक्षेप नहीं किया। किन्तु जब जुलूस माल रोडकी ओर मुड़ा तो उसे डाकघरसे आगे नहीं जाने दिया गया। जुलूसको वापस मोड़ने के लिए उन्हें नेताओंका सहयोग मिला। लाला दुनीचन्द[२] और डा० गोकलचन्द नारंग[३] सहायताको आये और जुलूसको माल रोडपर आगे बढ़ने से रोकने में कामयाब हो गये।

किन्तु सर माइकेल ओ'डायरको क्या चीज परेशान कर रही थी, इसका कुछ आभास मिलता है। कहते हैं, वे अपनी बातचीत में बार-बार यह विचार प्रकट करते

  1. एक स्थानीय नेता और कवि, जिन्होंने अपनी पत्नी सरलादेवी चौधरानीके साथ पंजाबके सार्वजनिक मामलोंमें प्रमुख रूपसे भाग लिया ।
  2. लाहौर नगरपालिकाके एक लोकप्रिय सदस्य।
  3. प्रमुख वैरिस्टर और लाहौरके नेता; वे एक घोड़े पर चढ़ गये और जुलूसको वापस शहर ले गये।