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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गया और तब छोड़ा गया जब उन्होंने बाजार के मुखियाको पुलिसके लिए १०० रुपये दिये। उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया और अपनी रिहाईके लिए ५० रुपये और देनेको मजबूर किया गया। पुलिसवाले उनकी दुकानपर जाते थे और जबरदस्ती क्रीम आदि उठाकर ले जाते थे। उनके पुत्रको ८ दिनतक बन्द रखा गया और फिर ३० कोड़ोंकी सजा दी गई; कोड़े लगते समय वह बेहोश हो गया था। उसने दूसरोंके भी कोड़े लगते देखे। वह कहता है: "वे लोग दर्दसे चीख रहे थे और उनके शरीरसे खून बह रहा था।" (बयान ११६)

लाला रखारामने देखा कि धनीरामको बिठाकर उनसे दोनों टाँगोंके नीचेसे हाथ ले जाकर कान पकड़वाये गये। ( बयान १०८)

गुलाम कादिर तूपगर अप्रैलके तीसरे सप्ताह में सब-इंस्पेक्टर अमीर खाँ द्वारा गिरफ्तार किया गया। उनसे लूटा हुआ माल बताने को कहा गया और जब उन्होंने इस सम्बन्ध में अनभिज्ञता प्रकट की तो उन्हें बुरी तरह पीटा गया। उनसे कुछ विशेष व्यक्तियोंको उस भीड़ में शामिल देखनेका बयान देने को कहा गया जिन्होंने भगताँवाला रेलवे स्टेशनको जलाया था। उनकी पगड़ी उतार दी गई, उससे उनके हाथ बाँध दिये गये और लगभग दस मिनटतक उन्हें एक पेड़से लटकाकर रखा गया। उन्होंने देखा कि उनके अतिरिक्त ८-९ आदमी और थे, जिन्हें यन्त्रणा दी जा रही थी। वे कहते हैं:

मैंने पीरा गुजरको जमीनपर पट लेट देखा और एक हवलदारको, जिसको में चेहरेसे जानता हूँ, थानेदार अमीर खाँकी मौजूदगी में उनकी गुदामें एक डंडा घुसाते देखा। वे पूरे समय दयनीय रूपसे चीखते रहे पर पुलिसने कोई दया नहीं दिखाई। पूरे तीन दिन और तीन रात हमें खानेको कुछ नहीं दिया गया और इस बीच पुलिसने हमें यन्त्रणा दी। मुझे ५ दिन बाद छोड़ा गया। (बयान १४१)

नाई मिराजदीन उपर्युक्त वक्तव्यका सामान्यतः समर्थन करते हैं। उनपर भी वही गुजरा जो गुलाम कादिरपर गुजरा। (वयान १४२)

मसजिदके इमाम (नमाज पढ़ानेवाले) और मुंशी गुलाम जोलानीके साथ जो बीती वह हमारे सामने यन्त्रणाकी जितनी घटनाएँ आई उनमें शायद सबसे बुरी है। उन्होंने रामनवमीके त्योहारके इन्तजाममें प्रमुख रूपसे भाग लिया था। उन्हें १६ अप्रैल को गिरफ्तार किया गया। उनका बयान इतना विशद है कि इमामके साथ क्या गुजरी, इसे समझने के लिए उसे पूराका-पूरा पढ़ना चाहिए। (बयान १३४) गवाहने अपने साथ किये गये व्यवहारके बारेमें जो कुछ कहा है, उसका मियाँ फीरोजदीन, अवैतनिक मजिस्ट्रेट (बयान २) और श्री गुलाम यासीन, बैरिस्टर (बयान ६) समर्थन करते हैं। मुहम्मद शफी (बयान १३९) ने गुलाम जीलानीको दी गई कुछ यन्त्रणाएँ अपनी आँखों देखीं और उन्होंने उनकी करुण चीत्कार भी सुनी। वे कहते हैं कि उसी दिन खैरदीन नामक एक और व्यक्तिके साथ भी उसी प्रकारका व्यवहार किया गया और उसकी हालत इतनी खराब हो गई कि जो चोटें उसे पहुँचो थीं उनके कारण वह