दृश्य देखा। वे सबके सब सीखचोंके बाहर अपने हाथ फैलाकर प्रार्थना कर रहे थे कि उन्हें पीने के लिए पानी दिया जाये। मुझे यह दृश्य देखकर गश आने लगा। मैंने एक सिपाहीसे कहा, "मुझे अन्दर जानेमें कोई ऐतराज नहीं है, पर में आपसे कह दूँ कि मैं वहाँ १५ मिनट भी नहीं रह सकूँगा। वह इन्स्पेक्टर के पास गया और कुछ देर बाद आकर मुझे एक दूसरी कोठरीमें ले गया, जहाँ मुझे डा० बशीर और बैरिस्टर बदरुल इस्लाम अलीखाँ बन्द मिले। इस कोठरीसे उन्होंने कुछ आदमियोंको निकाल दिया और उनकी जगह हम ६ नये आगन्तुकोंको रख दिया। मैंने अपने जीवन में इतनी गन्दी जगह कभी नहीं देखी। हमनें से अधिकांश लोग सारी रात बैठे रहे। हमने प्रार्थना भी की कि केवल उस शामके लिए हमें यह इजाजत दे दी जाये कि हम अपने-अपने घरोंसे खाना मँगवा लें, किन्तु यह प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई। हमने ओढ़नेके कपड़े माँगे। किन्तु इसे अस्वीकार कर दिया गया। कुछ समय बाद एक पुलिस वाला गानाके पास आया और उसने हमारी उपस्थितिमें उनसे कहा "तुम क्यों अपनी जान खतरेमें डालते हो? जिनसे तुम्हारी दुश्मनी हो ऐसे ४-५ आदमियों के नाम गिना दो और हम तुम्हें गवाह बना देंगे।" गामाने कहा, "मेरा कोई दुश्मन नहीं जिसका नाम बताऊँ।" पुलिसवाला चला गया और थोड़ी ही देरमें फिर आ गया और गामासे उसने कहा, "देखो, कयामका नाम बता दो और दूसरे लोगोंके बारेमें जो तुम्हारी इच्छा हो कहो। " पुलिस जिस प्रकार झूठी गवाही गढ़ रही थी उससे हम बहुत घबरा गये। हमने समझ लिया कि अब खैर नहीं है।
इस गवाहने जेलकी हालतका वर्णन भी किया है। उन्हें दो-दोको हथकड़ीसे जोड़कर तंग कोठरियोंमें रखा गया और इसी हालत में शौच आदिके लिए भी ले जाया जाता था। उन्होंने प्रार्थना की कि कमसे-कम जब वे टट्टीमें हों तबतक के लिए हथकड़ियाँ उतार दी जायें, किन्तु यह प्रार्थना नहीं मानी गई। चिलचिलाती धूपमें उन्हें चारों ओर चक्कर लगाते रहने को बाध्य किया गया--हम समझते हैं, शायद व्यायामके लिए? ३६ घंटेतक उन्हें किसी प्रकारका भोजन नहीं दिया गया और नंगे फर्शपर सोनेको बाध्य किया गया। बाद में चलकर हथकड़ियाँ निकाल ली गईं।
जो खाना हमसे खानेको कहा गया वह था एक ओर पड़ा हुआ चनेका एक छोटा-सा ढेर और दूसरी ओर एक बाल्टी पीनेका पानी। नजदीक ही पेशाबके लिए एक डब्बा था। हम यह खाना नहीं खा सके और एक दिन और भूखे रहे।
दूसरे दिन स्थिति में कुछ सुधार हुआ। उन्हें अपना-अपना खाना मँगाने और कार्ड बदलने की इजाजत दे दी गई। इस प्रकार २२ दिनतक वे किलेमें बन्द रहे। १२ मईको अदालत में पेशीके लिए उन्हें लाहौर ले जाया गया। वे ५२ आदमी थे और