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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

जेलमें कर दिया गया। ३ जूनको अमृतसरके कुछ बन्दियोंको अदालत में सुनवाईके लिए भेजा गया। कुछ और लोगोंको बिना यह बताये कि उनपर क्या आरोप है, अपने गवाह पेश करने को कहा गया। लाला गिरवारीलालको बिना मुकदमा चलाये और बिना यह बताये कि उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया था, ६ जूनको छोड़ दिया गया। इस प्रकार अमृतसरके एक जन-नेताको, जो अधिकारियोंके लिए भी अपरिचित नहीं थे, गिरफ्तार कर पखवाड़े-भरसे अधिक दिनोंतक नजरबन्द रखा गया और उनके साथ एक साधारण अपराधीसे भी बुरा बरताव किया गया, क्योंकि हर बन्दीको, जिसपर मुकदमा चलाया जाता है, यह अधिकार है कि अपने रिश्तेदारों या कमसे-कम कानूनी सलाहकारोंसे मिल सके और जिस प्रकारका भोजन चाहे मँगवा सके। मियाँ फीरोजदीन, जो २१ सालसे अवैतनिक मजिस्ट्रेट हैं और अमृतसरके एक रईस हैं कहते हैं कि एक ओर जहाँ अमृतसरके सम्मानित नागरिकोंको सताया और परेशान किया जा रहा था, दूसरी ओर नामी बदमाशोंको हाथ भी नहीं लगाया गया। (बयान २)

जैसा कि जाहिर है उच्च न्यायालयके वकील श्री मकबूल महमूद, जिन्होंने १० अप्रैलको अपनी जान जोखिममें डालकर पुलपर जमा भीड़को वापस ले जानेका यत्न किया था, कुछ समय बाद एक थानेदार द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। फिर उन्हें थाने लेजाया गया और उनसे ऐसा कहलवाया गया कि "मैं रॉबिन्सन और रोलैंडके कातिलोंकी शिनाख्त कर सकता हूँ और ऐसा करनेको तैयार हूँ।" [वे कहते हैं:]

मैंने पुलिसको बताया कि मैं पहले ही एक लिखित बयान पुलिसको भेज चुका हूँ, जिसमें मैंने कहा है कि मैं किसीकी भी शिनाख्त नहीं कर सकता। इसपर यह बयान मेरे पास लाया गया और मुझसे कहा गया कि मैं अपने हाथ से उसे फाड़ दूँ और एक दूसरा बयान दूँ जिसमें उन लोगोंके नाम हों, जो पुलिसकी नजरमें अपराधी थे। मैंने यह करने से इनकार कर दिया। इसपर मुझे कुछ धमकियाँ दी गईं। किन्तु कुछ समय बाद मुझे जाने दिया गया।

इसके बाद उनका नाम बचाव पक्षके गवाहके रूप में लिया गया। सरदार सूखासिंहने उनसे कहा कि कई लोगोंने बचाव पक्षकी तरफसे गवाही देने से इनकार कर दिया है और उन्हें भी ऐसा ही करना चाहिए। जब उन्होंने कहा कि उनकी आत्मा उन्हें ऐसा नहीं करने दे सकती तो इसपर सरदार सूखासिंहने कहा कि इन दिनों "किसीके अन्दर आत्मा नहीं है और जिनके अन्दर है उन्हें इसके लिए यातना सहनी पड़ती है।" उन्होंने [सुखासिंहने] आगे कहा कि वे उनकी वकालतकी सनद रद करवा देंगे और ऐसा कर देंगे कि वे झमेलेमें पड़ जायेंगे। (बयान ५)

२० अप्रैलको सरदार सुखासिंहने डा० किदारनाथ भंडारीसे, जो सीनियर असिस्टेंट सर्जन हैं और जिनकी आयु ६२ साल है, कहा कि जो भीड़ १० अप्रैलको श्रीमती ईस्डनपर आक्रमण करने गई थी, उसमें से किसीका नाम बतायें। डा० किदारनाथने कहा कि वे ऐसा नहीं कर सकते। इसपर सरदार सुखासिंह, श्री प्लोमर और श्री मार्शलते चिल्लाकर कहा, "अच्छा, तो तुम सरकारकी मदद नहीं करोगे! तुम्हें भी गिरफ्तार किया जायेगा।" इसपर डाक्टरने उत्तर दिया, "मैंने जिन लोगों