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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहते थे। बड़ी कठिनाईसे उन्हें अमृतसर छोड़नेके लिए अनुमतिपत्र मिला। २१ अप्रैलको वे कलकत्ता मेलसे रवाना हुए। व्यास नदीपर जो पुल है उसपर गाड़ी रोक दी गई और सब हिंन्दुस्तानी मुसाफिरोंके असबाबकी बारीकी से छानबीन की गई। कुछ देर बाद उन्हें सूचित किया गया कि अमृतसरके अधिकारियोंने उन्हें तलब किया है। वे कानपुर में पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्टके सामने उपस्थित हुए। सुपरिन्टेन्डेन्ट उनके साथ बहुत सौजन्यतासे पेश आये, और पुलिसकी देखरेख में उन्होंने लाला गिरधारीलालको अमृतसर भेज दिया। उनके हाथ में एक अखबार था, क्योंकि जो पुलिस सब-इन्स्पेक्टर उनके साथ था उसने उन्हें इसकी इजाजत दे दी थी। अमृतसरके पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट इसे बरदाश्त नहीं कर सके। पर सब-इस्पेक्टरने शान्तिपूर्वक उन्हें बताया कि लाला गिरधारीलालको अखबार खरीदने की इजाजत उसने ही दे दी थी, क्योंकि कानपुर में उसके अफसरका ऐसा कोई आदेश नहीं था कि उनकी स्वतन्त्रतापर इस प्रकार प्रतिबन्ध लगाया जाये। लाला गिरधारीलालको तुरन्त हथकड़ियाँ पहना दी गई और जब उन्होंने पूछा कि उन्हें क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है तो कोई जवाब नहीं दिया गया। २२ तारीखको दिनके ११ बजेसे दूसरे दिन सुबह ८ बजेतक उन्हें कुछ खानेको नहीं मिला। उन्हें एक छोटी-सी कोठरीमें बन्द कर दिया गया, जिसमें १०-११ आदमी और थे। कोठरीके एक कोने में एक बदबूदार पेशाबका बरतन रखा था। दूसरे दिन सुबह शौचादिके लिए उन सबको कुछ मिनटोंके लिए बाहर जाने दिया गया और फिर बन्द कर दिया गया। न उन्हें नहाने दिया गया, न कपड़े ही बदलने दिये गये। पानी भी बड़ी कठिनाई से उन्हें मिल सका, सो भी एक दयालु सिपाहीकी मेहरबानीसे। मईका महीना सालका शायद सबसे गरम महीना होता है और आदमियोंसे ठसाठस भरी एक छोटी-सी तंग कोठरी में कितनी तकलीफ हो सकती है इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। कुछ समय बाद उन्हें कुछ अधिकारियोंके सम्मुख पेश किया गया। उनमें से एकने उनके प्रति भद्दे और अपमानजनक शब्दोंका प्रयोग किया। २४ मईको उन्हें हवालातसे छोटी जेलमें ले जाया गया। जो भोजन उन्हें दिया गया वह "आदमीके खाने योग्य नहीं था।" २७ मईको वे और उनके साथी लाहौर ले जाये गये। एक-एक हथकड़ीसे दो-दो आदमी बँधे हुए थे। उनके पास किसीको आने नहीं दिया गया। जिन लोगोंने उनसे बात करनेका साहस किया, उन्हें उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया। लाहौरके रेलवे स्टेशनसे अदालततक, लगभग २ मीलका फासला, उन्हें पैदल तय करना पड़ा। पुलिस इन्सपेक्टरने उन्हें रास्ते में पानी भी नहीं पीने दिया। अदालत पहुँचनेपर उन्हें दिन-भर अदालतके बाहर इन्तजार करना पड़ा। उसके बाद उन्हें सेंट्रल जेल ले जाया गया और वहाँ प्रत्येकको एक-एक लोहेके पिंजड़े में बन्द कर दिया गया जो ७ फुट लम्बा, २ फुट चौड़ा और ४ फुट ऊँचा था। नहानेका इन्तजाम बहुत गन्दा था। एक छोटीसी नाली, जिसका हर मतलबसे उपयोग होता था, उन्हें टट्टी-पेशाबके लिए बताई गई। २७ तारीखको उनमें से थोड़ेसे लोगोंको, जिनके रिश्तेदारोंने आवश्यक खर्च दिया, कुछ थोड़ी बेहतर कोठरियाँ मिलीं और कुछ अच्छा भोजन दिया गया और तब कहीं उन्हें कपड़े बदलने की इजाजत मिली। २८ मईको उनका तबादला बोर्स्टल