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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


श्री भाटिया कहते हैं:

दूसरे शब्दोंमें, हमें दिन-भर उपस्थित रहना पड़ता था, या तो बागमें या शहरमें। हमें बार-बार याद दिलाई जाती थी कि हम महज पुलिसके सिपाही हैं, और हमारी किसी भी भूलका दण्ड केवल कोड़े या जेल ही नहीं, बल्कि मृत्यु भी हो सकता है। हमसे कुलियोंकी तरह काम कराया गया। हमें बहुत सारे लोगोंके सामन, जो हमारा आदर करते हैं, मेज कुसियाँ लाने ले जानेका आदेश दिया गया, यद्यपि इस काम के लिए अर्दली और दूसरे नौकर काफी संख्या में मौजूद थे।

उन्हें विशेष रूपसे यह सिखाया गया कि सलाम कैसे करना चाहिए। १२ तारीखको उन्हें छुट्टी दे दी गई। श्री भाटिया भी लाला कन्हैयालालकी भाँति यह मानते हैं कि यह सब शहरके सारे वकीलोंको दंडित करने के उद्देश्यसे किया गया। (बयान ९१)

पंडित राजेन्द्र मिश्र और दूसरे वकील भी उपर्युक्त आरोपोंका समर्थन करते हैं और कहते हैं कि इस प्रकार उनकी बेइज्जती की गई और उनके साथ बदसलूकी की गई, यद्यपि उन्होंने अधिकारियोंकी सहायता की थी। (बयान ९४)

कुल मिलाकर ९३ वकीलोंको इस तरह जलील किया गया। यह बात छोड़ दें कि अपने सामान्य पेशेसे इस प्रकार वंचित कर दिये जानेके कारण उनको अनावश्यक रूपसे कितनी आर्थिक हानि सहनी पड़ी।

शायद सबसे परेशान करनेवाली सजा, फौजी कानूनके दरम्यानकी गई अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ और जेलमें होनेवाला दुर्व्यवहार था। जिन दिनों गिरफ्तारियोंका दौर चल रहा था, उन दिनों कोई भी नागरिक अपने-आपको इससे सुरक्षित नहीं समझता था।

लाला गिरधारीलाल कहते हैं:

जहाँतक मुझे याद है, पुलिसने १२ अप्रैलसे लोगोंको गिरफ्तार करना शुरू किया। उसके बाद यह सिलसिला फिर नहीं रुका। रोज-रोज हर पेशे और तबकेके लोग गिरफ्तार किये जाने लगे ऐसे--लोग जो शान्तिपूर्वक अपने-अपने धन्धोंमें लगे थे। किसी भी मामले में यह नहीं बताया गया कि उसपर आरोप क्या है।

उनके एकदम हथकड़ियाँ डाल दी जाती थीं और उन्हें हवालातमें बन्द कर दिया जाता था, जिसमें उन्हें कई-कई दिनतक या महीनों रखा गया। यह भी नहीं बताया गया कि उनपर क्या आरोप है, न उन्हें यह अवसर दिया गया कि मित्रों या सम्बन्धियोंसे मिल सकें या सलाह कर सकें। जब श्री बदरुल इस्लाम अली खाँको गिरफ्तार किया गया तो लोगोंने यह अर्थ लगाया कि इस शहर में कांग्रेस आन्दोलन से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्तिको इसी तरह सजा भुगतनी होगी। लाला गिरधारीलाल ७ अप्रैलको अमृतसरसे चले गये थे, और ११ तारीखको कानपुरमें एक रिश्तेदारको सख्त बीमारीकी हालतमें छोड़कर वापस लौटे थे। इसलिए वे फिर कानपुर वापस जाना