दिनोंतक कहीं एक भी मेहतर नहीं दिखाई दिया। इसलिए घरोंका कूड़ा नहीं उठाया जा सका और पाखाने भी साफ नहीं किये गये। भिश्ती भी लगातार गैरहाजिर रहा।...न हमें सब्जियाँ मिल सकीं और न खानेकी दूसरी चीजें। (बयान १०२)
जैन मन्दिरके लाला गनपतराय, जो इसी गली में रहते हैं, अपने बयान में कहते हैं:
जो लोग पूजाके लिए सड़कपर स्थित मन्दिर जाना चाहते थे उन्हें भी उसी प्रकार रेंगनेके लिए विवश किया गया (बयान १२२)।
लाला देवीदासको, जिनका बैंकका रोजगार है, रेंगनेका आदेश दिया गया। उन्होंने कहा कि वे वापस अपने घर लौट जायेंगे, लेकिन उन्हें रेंगनेके लिए बाध्य किया गया। वे कहते हैं:
पहले मैंने अपने हाथों और घुटनोंके बल चलनेकी कोशिश की पर मुझे संगीनसे धमकाया गया और मुझे पेटके बल रेंगना पड़ा। (बयान ९९)
काहनचन्द पिछले २० सालसे अन्धे हैं। उन्हें भी रेंगनेको बाध्य किया गया और उनको ठोकरें मारी गई। (बयान १०५)
अब्दुल्लाको, जो पेशेसे अध्यापक हैं, रेंगना पड़ा और जब वे रास्ते में सुस्तानेको रुके तो उनको बूटों और राइफलके कुंदोंसे पीटा गया। स्थूलकाय होनेके कारण उनका सारा शरीर जहाँ-तहाँ छिल गया। (बयान १०६)
जिस समय रेंगनेके आदेशको कार्यान्वित किया जा रहा था उसी समय दूसरी ओर पवित्र कबूतरों और दूसरे पक्षियोंको मारा गया। गलीके एक सिरेपर स्थित पिंजरापोलको, जहाँ जानवरोंकी देख-भाल होती है और जो एक पवित्र स्थान माना जाता है, भ्रष्ट किया गया। गलियोंमें स्थित कुओंको सैनिकोंने उनके नजदीक पेशाब करके दूषित कर दिया। (बयान १२१)
सरकारी साक्ष्यके अनुसार ५० व्यक्तियोंको रेंगनेकी बर्बरतापूर्ण और अमानुषिक सजा दी गईं।
जिन लोगोंको जबरदस्ती सलाम करने की बेइज्जतीका शिकार नहीं होना पड़ा है वे आसानी से यह नहीं समझ सकते कि जिसको यह करनेके लिए बाध्य किया जाता है उसे कितने अपमानका अनुभव होता है। हम लोग भी, जिन्हें सलाम करनेकी मजबूरीसे गुजरनेवालोंकी जबानी उसका विवरण सुननेको मिला है, अन्दाजा ही लगा सकते हैं कि उनको कैसा लगा होगा। सलामीका आदेश, जिसे एक १,६०,००० की आबादीवाले शहरमें लागू किया गया, कोई छोटी बात नहीं थी। इसका अर्थ था खड़े होना और दायें हाथको एक खास तरीकेसे घुमाना। फिर इसमें कोई आश्चर्य नहीं--कुछ गवाह ऐसा बताते हैं--कि ठीकसे सलाम न करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया। और आदेश केवल ठीक तरह सलाम करवाने में ही समाप्त नहीं होता था; जो यह नहीं कर पाते थे, उन्हें कई प्रकारको सजाएँ दी जाती थीं।
लाला हरगोपाल खन्ना, बी० ए०, १८ अप्रैलको कुछ मित्रोंके साथ एक गलीसे गुजर रहे थे। उन्होंने घोड़ोंपर आते हुए पुलिसके कुछ सिपाही देखे और उनके पीछे-पीछे