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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


एक क्षणके लिए हम देखें कि वास्तव में हुआ क्या। लाला ईश्वरदास अमृतसर की एक बड़ी फर्ममें सहायक हैं। १८ अप्रैलको वे लाला लाभचन्दके घर गये। यह घर नक्शेमें[१] निशान लगाकर दिखाया गया है। अचानक श्री प्लोमर सैनिकोंके साथ गली में पहुँच गये। लाला ईश्वरदास और उनके मित्र एक खिड़कीसे झाँक रहे थे। श्री प्लोमरने उनपर अपना चाबुक घुमाया और उनसे कहा कि खड़े होकर सलाम करें। लाला लाभचन्दसे अपने मकानका एक भाग सैनिकोंके रहने के लिए खाली कर देनेको कहा गया।

गवाह कहता है:

अपराह्न के लगभग ४ बजे ईश्वरदास, पन्नालाल, मेलाराम और मैंने घर जाना चाहा किन्तु पुलिसने इसकी इजाजत नहीं दी। हमने दुबारा इजाजत माँगी, किन्तु यह इजाजत शर्तपर दी गई कि हम गलीमें से रेंगते हुए जायें। इस तरह हम सबको पेटके बल रेंगकर गलीमें से गुजरना पड़ा। दूसरी किसी सड़कसे हम अपने घरोंको नहीं जा सकते थे। (बयान १०४, पृष्ठ १६३)

हम यहाँ बता दें कि यह आदेशका पहला दिन था और उसकी घोषणा नहीं हुई थी--न लिखित, न जबानी। लोग तभी उसके बारेमें जान पाये जब वह कार्यान्वित किया जा रहा था।

एक दूसरे गवाह लाला मेघामल, जो कपड़ेके व्यापारी हैं, कहते हैं:

मेरा घर कूचा कूड़ीचान (रेंगनेवाली गलीसे निकलनेवाला एक गलियारा) में है, और मेरी दूकान गुरु बाजारमें है। कूचा कूड़ीचानमें जिस दिन पहले-पहल सैनिक तैनात किये गये, उसी दिन में जब शामको लगभग ५ बजे घर लौट रहा था तो मुझे सैनिकोंने रोक लिया और मुझे पेटके बल रेंगनेका आदेश दिया गया। किन्तु में भाग खड़ा हुआ और तबतक वहाँसे दूर रहा जबतक सैनिक चले नहीं गये। उस दिन में रातको ९ बजे घर पहुँचा और मैंने देखा कि मेरी स्त्री बुखारमें पड़ी हुई है। उसे देनेके लिए घरमें पानीतक नहीं था और न डाक्टरका प्रबन्ध हो सकता था, न दवाईका। मुझे बहुत रातको स्वयं पानी भरकर लाना पड़ा। इसके बादके सात दिनोंतक मेरी स्त्री बिना इलाजके पड़ी रही, क्योंकि कोई भी डाक्टर पेटके बल रेंगनेके लिए तैयार नहीं हो सकता था। (बयान ११४)

इस गलीमें एक जैन सभा मन्दिर है, जिसमें कुछ साधु रहते हैं। मंदिरके नजदीक अफीमके ठेकेदार लाला रलियारामका एक मकान है। जब वे अपनी दुकान जा रहे थे तो उन्हें रेंगने के लिए मजबूर किया गया। वे कहते हैं:

जब में रेंग रहा था तो उन्होंने मुझे बूट मारे और राइफलके कुंबोंसे भी मुझपर चोटें कीं। उस दिन में खाना खानेके लिए घर नहीं गया।...पूरे ८

  1. देखिए पृष्ठ १९३ के सामनेवाला चित्र।