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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


६. अपराधोंकी जाँचके लिए विशेष अदालतें स्थापित की गई। जिन्होंने कानूनके नामपर बहुत अन्याय किया और फिर न्यायके नामपर अन्यायके शिकार होनेवाले इन लोगोंको अपीलका भी अधिकार नहीं दिया गया।

अब हम उस आदेशपर आते हैं जिसे रेंगनेका आदेश कहा जाता है। जिस गली में लोगोंको रेंगना पड़ता था, वह एक तंग और घनी आबादीवाली जगह है। इसके दोनों ओर दुमंजिली इमारतें हैं और उसमें से कई सँकरी-सँकरी गलियाँ निकलती हैं, जिनमें बहुत से मकान हैं। इस गलीके निवासियोंके लिए, यदि उन्हें सौदा खरीदने के लिए या शहर जाना होता था तो इसके सिवा कोई चारा नहीं था कि वे उसके किसी भागसे गुजरें--रेंगते हुए आयें और जायें। स्वास्थ्य-सफाई सम्बन्धी कोई भी सहायता बिना रेंगे हुए नहीं मिल सकती थी। जिस गलीके लिए यह आदेश जारी किया गया था, उसकी पूरी लम्बाई लगभग १५० गज है। साथका नक्शा देखनेपर इसके बीचोबीच एक आयत दिखाई देगा, जिसपर 'टिकटिकी' लिखा हुआ है।[१] यह चौखटा कोड़े लगाने के लिए विशेष रूपसे खड़ा किया गया था। यह आदेश ८ दिनतक लागू रहा। यद्यपि जनरल डायरने इसको "चारों हाथ-पैरोंसे चलना" कहा है, और इसे अखबारोंमें "हाथ और घुटनोंका आदेश" कहा गया है, लेकिन इसका तरीका यह था कि लोगोंको पेटके बल लेटना पड़ता था और फिर छिपकलीकी तरह रेंगना होता था। यदि रेंगनेवाला जरा भी घुटनोंको उठाता या मोड़ता था तो उसकी पीठपर राइफलके कुन्दे पड़ते थे, इसलिए चलनेका काम केवल पेट और हाथोंके बल करना पड़ता था। यह गली, हिन्दुस्तानकी अधिकांश गलियोंकी भाँति ही गन्दी है और कूड़ेकचरेसे भरी है और इसमें कंकड़-पत्थर भी हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि आदेश जबानी ही दिया गया था और ऊपरके अधिकारियोंके आदेशसे फिर वापस ले लिया गया था। जनरल डायरने इस आदेशके लिए ये कारण प्रस्तुत किये:

मुझे लगा कि स्त्रियोंको पीटा गया है। स्त्रियोंको हम पवित्र मानते हैं। मैंने इसपर बहुत विचार किया कि ऐसे भयंकर कार्योंके लिए उपयुक्त सजा क्या हो सकती है। मेरी समझमें नहीं आया कि क्या करना चाहिए। इसमें कुछ संयोगका तत्त्व रहा। जब मैं सन्तरियोंको देखने गया तो मैंने आज्ञा दी कि एक त्रिभुजाकार ढाँचा खड़ा किया जाये। मैंने महसूस किया कि इस गलीको पवित्र समझा जाना चाहिए। इसलिए मैंने दोनों ओर सन्तरी तैनात कर दिये और उन्हें आज्ञा दी कि "इधरसे किसी भी हिन्दुस्तानीको गुजरने न दिया जाये" मैंने यह भी कहा, "यदि उन्हें यहाँसे जाना ही हो तो उन्हें हाथ-पैरोंके बल चलकर जाना होगा।" मेरे मनमें यह विचार ही नहीं आया कि कोई भी आदमी जिसके होश-हवाश दुरुस्त हों ऐसी स्थिति में स्वेच्छासे वहाँसे गुजरना चाहेगा।

  1. देखिए पृष्ठ १९३ के सामनेका चित्र।