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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


११ अप्रैलको बैरिस्टर श्री मुहम्मद सादिक, कुछ और लोगोंके साथ अधिकारियोंके पास मृतकोंके अन्तिम संस्कारके सिलसिले में बात करने गये। वे कहते हैं:

जो बातचीत मैंने उनसे की उससे मुझे लगा कि चूँकि यूरोपीय लोगोंकी हत्याएँ हुई हैं अतः उनके खूनका बदला अवश्य लिया जायेगा और यदि जरा भी प्रतिरोध या अवज्ञा हुई या शान्तिभंग हुई तो पर्याप्त शक्तिका उपयोग किया जायेगा और यदि आवश्यक हुआ तो शहरपर गोलाबारी भी की जायेगी। (बयान १९)

सब-असिस्टेंट सर्जन डा० बालमुकन्द कहते हैं कि ११ अप्रैलको सिविल सर्जन कर्नल स्मिथने नीचे लिखे शब्द कहे:

जनरल डायर आ रहे हैं और वे शहरपर बमबारी करेंगे। उन्होंने नक्शा खींचकर हमें बताया कि किस-किस स्थानपर गोले गिराये जायेंगे और किस प्रकार आधे घंटे के अन्दर शहरको तहस-नहस कर दिया जायेगा। मैंने बताया कि मैं शहरमें रहता हूँ और पूछा कि यदि बमबारी हुई तो मेरा क्या होगा। उन्होंने मुझे सलाह दी कि यदि में अपनी जानबचाना चाहता हूँ तो अच्छा होगा कि मैं शहर छोड़ दूँ और अस्पतालमें रहने लगूँ| (बयान २०, पृष्ठ ५६)

इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि १३ अप्रैलकी "विभीषिका" की पृष्ठभूमि क्या थी। एक जबरदस्त प्रहार करना बाकी था। गोलाबारी करनेका विचार स्पष्टतः छोड़ दिया गया। १३ अप्रैलकी सभाके रूप में एक बहुत अच्छा अवसर हाथ आ गया और जनरल डायरने उससे लाभ उठाया। श्री सी० एफ० एन्ड्रयूजने उसे कत्लेआम कहा है जो ग्लैंकोके कत्लेआमकी[१] ही तरह था। यदि अमानुषिकताका मूल्यांकन करनेके लिए उसे श्रेणियों में बाँटा जा सकता है तो हम समझते हैं कि ग्लैंकोका कत्लेआम जलियाँवाला बागके कत्लेआमसे भी बुरा था, किन्तु आजके युगमें औचित्यका जो स्तर अपेक्षित है, उसे ग्लैंकोके कत्लेआमके दिनों में सैनिक नियमावलियोंमें मान्यता नहीं मिली थी। हमारे खयालसे जिन लोगोंने घोषणा सुनी थी उन्होंने भी उसके उस भागका ठीक-ठीक महत्त्व या अर्थ नहीं समझा था, जिसमें सभाओं आदिपर रोक लगाई गई थी। उस सभामें घोषणाकी खुली अवहेलना करके एक भी व्यक्ति नहीं गया था। सैनिक अधिकारियोंको उत्तेजनाका कोई कारण नहीं दिया गया था, और न अमृतसरमें या अमृतसरके बाहर ही कोई ऐसी बात हुई थी, जिससे कत्लेआमका औचित्य ठहरता। यह एक सोच-विचारकर किया हुआ अमानुषिक कृत्य था और यदि भारतमें अंग्रेजी शासन इस अक्षम्य अपराधसे मुक्त होना चाहता है तो जनरल डायरको उनकी कमानसे फौरन मुक्त करके न्यायोचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

उन्होंने लॉर्ड हंटरकी समितिके सामने कहा है कि सर माइकेल ओ'डायरने उनके कार्यका समर्थन किया है। हम यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि एक ऐसे व्यक्तिने, जो पंजाबकी जनताका संरक्षक था, मानवताके प्रति ऐसे जघन्य अपराधका किस प्रकार

  1. यह कत्लेआम सन् १६९२ में विलियम और मेरीके शासनकालमें स्कॉटलैंडमें हुआ था।