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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


जहाँतक मृतकोंकी संख्याका सम्बन्ध है, यह दिलचस्प बात है कि सरकारके अपने कथनके ही अनुसार उसकी जाँच २० अगस्तसे पहले शुरू नहीं हुई, यानी गोलीकाण्डके ४ महीने बाद। तब श्री टॉमसनने घोषित किया कि २९० से अधिक लोग नहीं मरे थे। यों अब उन्होंने सेवा समिति द्वारा दी गई संख्या मान ली है जो ५०० है और जो प्रत्येक व्यक्तिका पूरा पता लगाने के बाद निश्चित की गई है, और कमसे-कम है। ठीक-ठीक संख्या कभी भी ज्ञात नहीं हो सकेगी, किन्तु बहुत सावधानीसे जाँच करने के बाद हमारा विचार है कि लाला गिरधारीलालने जो हिसाब लगाकर १,००० की संख्या बताई वह किसी प्रकार अत्युक्तिपूर्ण नहीं है। उस छोटी-सी जगहमें २०,००० लोगोंपर, और सो भी जिधर भी भीड़ सबसे ज्यादा घनी दिखाई दी उधरको, गोलियोंकी बौछार करने के बाद यदि सैनिक लोग १,००० व्यक्तियोंको भी नहीं मार सके हों तो यही कहा जायेगा कि उन्हें ठीकसे गोली चलाना नहीं आता था। याद रहे कि हँसलीकी तरफसे और हँसलीके अन्दर भी, जो एक तंग गली है और नक्शे में दाईं ओर दिखाई गई है,[१] गोलियाँ चलाई गई। इस गलीके सामनेवाले छज्जेपर हमने गोलियोंके निशान देखे; और हमारे सामने इस बात की गवाही पेश की गई है कि बागके बाहर वहाँसे निकलनेके सभी रास्तोंपर सैनिक तैनात थे और जब लोग इन रास्तोंपर भाग रहे थे उस समय उनपर गोलियाँ दागी गई? इसमें सन्देह नहीं कि जनरल डायरकी योजना यह थी कि अधिक से अधिक लोग मारे जायें और यदि मरनेवालोंकी संख्या १,००० से अधिक नहीं थी तो इसमें उनका दोष नहीं। उनके कारतूस खत्म हो गये थे और गली इतनी सँकरी थी कि वे अपनी बख्तरबन्द गाड़ियाँ बागके अन्दर नहीं ले जा सके थे।

१३ तारीखकी वीभत्स घटनाओंका तफसीलसे बयान कर सकना-- जस्टिस रैकिनके शब्दोंमें, उसकी भयंकरता का पूरा-पूरा विवरण देना--सम्भव नहीं है। उनको अच्छी तरह समझनेके लिए यह आवश्यक है कि सब सरकारी गवाहियोंको, और जो गवाहियाँ हमने प्रकाशित की हैं, उन्हें पूरा पढ़ा जाये। १० अप्रैलकी हिंसात्मक घटनाओंके बाद अंग्रेज अधिकारी क्रुद्ध हो गये थे, और शायद यह उचित ही था। वे ही लोग, जिनके प्रति वे सौजन्यसे पेश आया करते थे, अब उनके लिए अरुचिकर हो गये थे। अमृतसरके एक जाने-माने नागरिक लाला ढोलनदास ऐसे ही लोगोंमें से थे। जब वे अधिकारियोंकी प्रार्थनापर उनसे मिलने गये तो उन्होंने उन्हें क्रुद्ध पाया।

सभी लोग बहुत ही उत्तेजित मनःस्थितिमें थे। यहाँतक कि श्री सीमूरने यह कहा बताते हैं कि एक-एक यूरोपीयको जानके लिए एक-एक हजार हिन्दुस्तानियोंको कुर्बान कर दिया जायेगा। किसीने सुझाव दिया कि शहरपर गोलाबारी की जाये। इसपर लाला ढोलनदासने अधिकारियोंको सूचित किया कि यदि किसी भी प्रकार स्वर्ण मन्दिरके किसी हिस्सेको छुआ गया या उसको क्षति पहुँची तो भयंकर संकट उत्पन्न हो जायेगा, क्योंकि यह मन्दिर सारे पंजाबके लिए पवित्र स्थल है। (बयान १, पृष्ठ ७)

  1. देखिए पृष्ठ १९३ के सामनेका चित्र।