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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सहायता करना उनका कर्त्तव्य नहीं था। वह एक चिकित्सा-सम्बन्धी प्रश्न था। गोली चलना बन्द होते ही वे वहाँसे चले आये। थोड़ी-थोड़ी देर में वे "गोली चलाना रोककर उन स्थानोंपर निशाना लगानेका हुक्म देते थे जहाँ भीड़ सबसे अधिक घनी जान पड़ती थी।" यह उन्होंने इसलिए नहीं किया कि वे भागने में जल्दी नहीं कर रहे थे बल्कि इसलिए किया कि वे (जनरल डायर) "यह निश्चय कर चुके थे कि लोगोंको वहाँ इकट्ठे होनेकी सजा दी जाये।"

अब हम इस घटनाकी और अधिक तफसीले प्रत्यक्षदर्शी गवाहोंके मुँहसे प्रस्तुत करेंगे। हम लाला गिरधारीलालके बयानका पहले ही जिक्र कर चुके है। उन्हें बागके नजदीक ही एक मकानसे सारा दृश्य देखने को मिला:

मैंने सैकड़ों लोगोंको जहाँके-तहाँ मरते देखा। सबसे बुरी बात यह थी कि गोलियाँ उन रास्तोंकी ओर चलाई जा रही थीं जहाँसे लोग बाहरको ओर भाग रहे थे। निकलने के लिए केवल ४-५ छोटे-छोटे रास्ते थे और इन सभी रास्तोंपर भीड़के ऊपर गोलियोंकी सचमुच बौछार हो रही थी, और...कई लोग भागती हुई भीड़में पैरोंके नीचे कुचलकर मर गये। खूनकी नदियाँ बह रही थीं। जो लोग जमीनपर लेट गये थे उनपर भी गोलियाँ चलाई गई।...मृतकों या घायलोंकी देखभाल के लिए अधिकारियोंने कोई प्रबन्ध नहीं किया था।...घायलोंको पानी पिलाया और उनकी जो सहायता मैं कर सकता था वह की।...मैंने पूरी जगहका चक्कर लगाया और वहाँ पड़ी लगभग प्रत्यक लाशको देखा। जगह-जगहपर मृतकोंके ढेर लगे हुए थे। मृतकोंमें वयस्क और किशोर दोनों ही थे। किसीकी खोपड़ी खुल गई थी, किसीकी आँख गोलीसे उड़ गई थी, किसीकी नाक, किसीका सीना, किसीके हाथ-पैरोंके टुकड़े-टुकड़े उड़ गये थे।...मेरा खयाल है, उस समय १,००० से अधिक लाशें बागमें होंगी।...मैंने देखा कि लोग जल्दी-जल्दी भाग रहे थे और बहुतोंको अपने घायल या मृतक परिजनोंको वहाँ छोड़ना पड़ा, क्योंकि उन्हें भय था कि रातके आठ बजेके बाद उनपर फिर गोली चलाई जायेगी।" (बयान १, पृष्ठ १०-११)

यहाँ यह बता देना ठीक होगा कि १३ अप्रैलको डुग्गी पीटकर जो घोषणा की गई थी उसका दूसरा भाग इस प्रकार था:

शहरमें रहने वाले किसी भी व्यक्तिको ८ बजेके बाद घरसे निकलनेको इजाजत नहीं है। ८ बजेके बाद यदि कोई व्यक्ति बाहर दिखाई देगा तो उसे गोली मारी जा सकती है।

गवाहने आगे कहा है:

बहुतसे घायल जो बागसे निकलने में किसी तरह कामयाब हो गये, रास्तेमें घावोंके कारण मर गये और सड़कोंपर पड़े रहे। बैसाखीका पर्व अमृतसरकी जनताने इस प्रकार मनाया।