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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

लॉर्ड हंटरने प्रश्न किया :

क्या सैनिक दस्तोंकी व्यवस्था करने के लिए १२.४० से ४ बजे तकके समयकी आवश्यकता हुई?

जनरल डायरने उत्तर दिया:

दरअसल मुझे विश्वास नहीं था कि मैंने जो-कुछ उस दिन सुबह किया था उसके बाद वे सचमुच जमा होंगे। मुझे यह खयाल नहीं आया कि कुछ सैनिक और भेजकर लोगोंको आगाह कर दूँ कि वे सभामें न जायें।

चार बजे उन्हें निश्चित सूचना मिली कि सभा सचमुच शुरू हो गई है। जल्दी ही वे नाकेबन्दीके लिए सैनिक लेकर शहरकी ओर चल पड़े। इनमें २५ राइफलधारी गोरखे और २५ सिख भी शामिल थे। उनके साथ ४० गोरख और थे, जिनके पास खुखरियाँ थीं और वे अपने साथ दो बख्तरबन्द गाड़ियाँ भी लेते गये। वे साधारण "टहलनेकी चाल" चलते हुए गये। जब लॉर्ड हंटरने प्रश्न किया कि उन्होंने यह क्यों आवश्यक नहीं समझा कि वहाँ पहुँचने में कुछ अधिक शीघ्रता की जाये, तो उन्होंने उत्तर दिया:

नहीं जनाब, गरमी बहुत थी, हम साधारण कदम-चालसे ही चले।

वे ५ बजे या सवा पाँच बजे शामको बागमें पहुँचे।

जलियाँवाला बाग क्या है? "बाग" शब्द जगहको देखते दरअसल ठीक नाम नहीं है। "जालियाँ" उसके मूल मालिकोंका जाति-नाम है; "वाला" सम्बन्धबोधक शब्द है। "बाग" जिसका अर्थ बगीचा है, दरअसल मकानोंसे घिरा एक परती जमीनका टुकड़ा है। उस समय यह जमीन एक निजी सम्पत्ति थी और उसके कई मालिक थे। जैसा कि संलग्न नक्शेसे[१] साफ है, यह स्थान एक असमान आयत है। इस आयतमें तीन पेड़ है, एक टूटी-फूटी गुम्बददार समाधि है और एक कुआँ है। अन्दर जानेका मुख्य रास्ता एक तंग गलीसे है, सौभाग्यवश जिसमें बख्तरबन्द गाड़ियाँ नहीं जा सकती थीं। अन्दर जाने के लिए और कोई नियमित रास्ते नहीं थे, किन्तु ४-५ स्थानोंपर सँकरे रास्ते थे, जिनमें से होकर बाहर निकला जा सकता था। इस अहातेके प्रवेशस्थलपर जमीन कुछ ऊँची है और सैनिकोंको तैनात करने और सामनेकी भीड़पर गोली चलाने के लिए बहुत उपयुक्त है। इसलिए जब जनरल डायरने अपने ९० सैनिकोंके साथ बागमें प्रवेश किया, उस समय भीड़के लिए बाहर निकल सकनेका कोई आसान रास्ता नहीं था।

जो गवाही हमारे सामने है, उसके अनुसार जनरल डायरके पहुँचने से पहले सभामें, जिसमें लगभग २०,००० लोग थे, हंसराज व्याख्यान दे रहा था। वे और थोड़े-से दूसरे लोग एक कामचलाऊ मंचपर खड़े थे। इसे नक्शे में चिह्नित स्थानपर देखा जा सकता है। सैनिकोंके पहुँचनेसे पहलेसे एक वायुयान सभास्थलके ऊपर मँडरा रहा था। हंसराजने लोगोंसे कहा कि वे भयभीत न हों। श्रोताओंमें बहुत-से लड़के और बच्चे थे, और कुछ

  1. देखिए पृष्ठ १९३ के सामनेवाला चित्र।