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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

सवारी। ज्यों ही मैं प्लेटफार्मसे निकला मेरी भेंट सरदार विक्रमसिंहसे हो गई। उन्होंने मुझे सलाह दी कि या तो मैं वापस वहीं चला जाऊँ जहाँसे आया था, या कमसे-कम किसी भी हालतमें शहरमें प्रवेश न करूँ। चूँकि वे बहुत घबराये हुए थे--जैसा कि मुझे लग रहा था--अतः उन्होंने ज्यादा देर मुझसे बातचीत नहीं की। एक रेलवे कर्मचारीको कृपासे, बीस मिनट प्रतीक्षा करनेके बाद और बड़ी कठिनाईसे, मुझे एक कुली मिला जो मेरा सामान स्वर्ण मन्दिर तक ले गया। वहाँ पैदल चलनेवालोंके लिए जो पुल है उसपर कुछ यूरोपीय सैनिकोंका पहरा था, जो सब चीजोंकी अच्छी तरह तलाशी लिये बिना किसीको शहरमें प्रवेश नहीं करने देते थे। अगर किसीके पास किसी तरहकी छड़ी होती थी, तो वह अवश्य ही उससे रखवा ली जाती थी। मेरे सामानको अच्छी तरह उलट-पुलटकर देखने के बाद मुझे आगे जाने दिया गया। गाड़ियोंके पुलके ऊपरसे किसीको जानकी इजाजत नहीं थी। यह हाल कई दिनों, सम्भवतः १५ अप्रैलतक, चला। शहरके बाहर हर कदमपर राइफलें और संगीन लिये हुए पुलिस या फौजके सिपाहियोंके अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देता था। शहरके अन्दर कहीं पुलिसका एक भी सिपाही ड्यूटीपर नहीं दिखाई पड़ता था।...शहरमें प्रवेश करते ही सबसे पहले जिस चीजने मेरा ध्यान खींचा वह यह थी कि जल-पूर्ति बिलकुल बन्द कर दी गई थी...फिर शामको मैंने देखा कि खास शहर में बिजली भी काट दी गई थी। जहाँतक मुझे याद है, यह परेशानी भी अगर ज्यादा नहीं तो १८ या १९ अप्रैलतक तो चली ही। स्वर्ण मन्दिरकी ओर जाते हुए मैंने हिंसात्मक कार्रवाइयोंके चिह्न देखे। टेलिग्राफके तार कटे हुए थे और कुछ इमारतें जली पड़ी थीं। (बयान १, पृष्ठ १-२)

सरकारी साक्ष्य के अनुसार भी जल-आपूर्ति और बिजली तीन-चार दिनोंतक बन्द रही, और यह स्पष्ट है कि लोगोंको इस निर्दयतासे बिजली-पानीसे वंचित करनेके पीछे इरादा पूरे शहरको उस हिंसाके लिए दण्ड देना था जिसमें कुछ ही लोगोंने भाग लिया होगा और जिसे रोकने में, जैसा कि लॉर्ड हंटरने एक गवाहको बताया, शान्तिप्रिय नागरिक असमर्थ रहे।

१३ अप्रैलको सुबह ९.३० बजेके लगभग जनरल डायरने एक अंगरक्षक टुकड़ीके साथ शहरमें प्रवेश किया और एक घोषणा की। यह घोषणा, लॉर्ड हंटरके सामने जनरल डायरकी गवाहीके अनुसार, तीन भागों में थी। इसका अन्तिम भाग ही इस अवसरपर महत्त्वका है। वह इस प्रकार है:

"शहरमें या शहरके किसी भी भागमें या शहरके बाहर किसी भी प्रकारका कोई भी जुलूस किसी भी समय निकालनेकी मुमानियत है। इस प्रकारके किसी भी जुलूस, या ४ व्यक्तियोंके किसी भी जमघटको गैर-कानूनी जमघट माना जायेगा और आवश्यक होनेपर शस्त्र-बलसे तितर-बितर कर दिया जायेगा।"

जनरल डायरसे बारीकीसे पूछताछ की गई कि 'आवश्यक होनेपर' की शर्त और "जुलूस" के साथ-साथ प्रयुक्त हुए शब्द "जमघट" का क्या अर्थ है। "आवश्यक