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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


वे ११ तारीखको लाहौर लौट गये। शहरका भार श्री माइल्स इविंगने फौजको सौंप दिया। लाहौर पहुँचनेपर उन्होंने लेफ्टिनेन्ट गवर्नरको इसकी सूचना दी, और लेफ्टिनेन्ट गवर्नरने इसपर अपनी सहमति दे दी। दूसरे दिन सुबह श्री किचिन फिर मोटर द्वारा अमृतसर गये, पर उन्हें वहाँ बलवेके कोई चिह्न नहीं दिखाई दिये। इसी बीच जनरल डायर पहुँच गये थे; उन्होंने राम बागमें अपना सदर मुकाम कायम कर लिया था और पूरा नियन्त्रण अपने हाथमें ले लिया था।

जनरल डायरने जो पहला काम किया वह था लोगोंको गिरफ्तार करना। उन्होंने शहरमें प्रवेश किया और बिना किसी भी प्रकारके प्रतिरोध या झगड़ेके करीब बारह गिरफ्तारियाँ कीं।

अब हम यह देखेंगे कि जनताने इस बीच क्या किया। १० तारीखकी रातको शहरको राम-भरोसे छोड़ दिया गया, पर कोई लूटपाट नहीं हुई। ११ तारीखको तड़के ही वे मृतकोंका अन्तिम संस्कार करना चाहते थे। पहले तो सैनिक अधिकारियोंने एक अर्थीके साथ चारसे अधिक व्यक्तियोंको जानेकी इजाजत ही नहीं दी। इससे लोगोंमें बहुत असन्तोष फैल गया। वे अर्थियोंको जुलूस बनाकर ले जाना चाहते थे। उन्होंने अधिकारियोंको इस बातपर राजी करने के लिए अपने प्रतिनिधि भेजे। बहुत कहने सुननेके बाद इजाजत तो मिल गई किन्तु यह आज्ञा दी गई कि जुलूस २ बजेसे पहले वापस हो जाये। जुलूस बहुत बड़ा था, किन्तु आज्ञाका अक्षरश: पालन हुआ और सब काम निश्चित समयसे पहले पूरा कर लिया गया। १२ अप्रैलको हंसराजने, जो आगे चलकर अमृतसर षड्यंत्र काण्डमें मुख्य मुखबिर बना, ढाब खटीकानमें एक सभा की और उसने ऐलान किया कि एक और सभा १३ अप्रैलको जलियांवाला बागमें होगी, जिसका सभापतित्व लाला कन्हैयालाल करेंगे। लाला कन्हैयालालने स्वयं इस बातसे इनकार किया है कि उनसे इस तरहकी किसी सभाका सभापतित्व करने के लिए कहा गया था या उन्होंने इसके लिए स्वीकृति दी थी। वे ७५ वर्षके हैं और पुराने तथा सम्मानित वकील हैं, एवं बहुत ही लोकप्रिय हैं। (बयान २९)। उनका बयान सच है, इस बातमें हमें तनिक भी सन्देह नहीं है। हमारा खयाल है कि उनके नामका उपयोग लोगोंको भारी संख्यामें जमा करने के लिए ही किया गया था।

इसके बाद जो-कुछ हुआ, उसे समझने के लिए अमृतसरका जो चित्र वहींके एक सज्जनने, जो कुछ दिनोंके लिए बाहर गये हुए थे, खींचा है, उसे सामने रखना जरूरी है। यह चित्र प्रस्तुत करनेवाले सज्जन है लाला गिरधारीलाल, जो पंजाब व्यापार मण्डलके उपाध्यक्ष और अमृतसर फ्लोर ऐंड जनरल मिल्स कम्पनीके प्रबन्ध निदेशक हैं। वे कहते हैं:

मैं ११ अप्रैलको लगभग ११.३० बजे सुबह कलकत्ता मेल द्वारा कानपुरसे अमृतसर पहुँचा...। अमृतसरके निकट नहरके पुलपर और उससे आगे भी मैंने पुलिसके दस्ते देखे जो रेलकी पटरियोंकी रक्षाके लिए तैनात थे। गाड़ी जब स्टेशनपर पहुंची तो स्टेशन एक सैनिक चौकी-जैसा लग रहा था। सर्वत्र सैनिक और बन्दूकें ही दिखाई पड़ती थीं...न कहीं कोई कुली था और न कोई