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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

ठहराये जा सकते। बैंकोंके मैनेजर अपने गुणोंके कारण लोकप्रिय थे। दूसरे लोग, जिनका खून किया गया था, भीड़के लिए अपरिचित थे और वे सर्वथा निर्दोष थे। कुमारी शेरवुड एक ईमानदार ईसाई शिक्षिका थीं, और श्रीमती ईस्डेनने कितनी ही आपत्तिजनक बात क्यों न कही हो, लेकिन भीड़ने जो कुछ किया, उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। इमारतोंको ध्वस्त करना निरा पागलपन था; और हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि अमृतसरकी जनताने इससे पहले जो अद्भुत आत्मसंयम दिखाया था, उससे प्राप्त सारा लाभ--सारी नेकनामी इस भीड़के वहशियाना और अशोभनीय व्यवहारसे खत्म हो गई।

क्या इन ज्यादतियोंको रोका जा सकता था? क्या इन निर्दोष व्यक्तियोंके प्राण बचाये जा सकते थे? पुलिस क्या कर रही थी? कोतवाली और टाउन हॉलकी इमारतें ही ब्लॉकमें हैं। कोतवाली में पुलिस काफी संख्यामें मौजूद थी। भीड़ने कोतवालीकी ओर आँख भी नहीं उठाई, जबकि उसने दण्ड-भयकी तनिक भी परवाह न करते हुए पासके ही टाउन हॉलको जला डाला। जलाई गई अधिकांश दूसरी इमारतें भी कोतवालीके समीप ही थीं। पुलिसको यह भी सूचना थी कि बैंकोंको जलाया जा रहा है। इस समय पुलिसका यह स्पष्ट कर्त्तव्य था कि वह और जरा चुस्तीसे कुछ कार्रवाई करती और अपनी जान जोखिममें डालकर भी, कमसे-कम उन अंग्रेजोंको बचानेका यत्न करती, जिनकी हत्या की गई।

ये हत्याएँ और आंगजनीकी घटनाएँ अधिकारियोंके लिए इतनी आकस्मिक थीं कि वे कुछ समयके लिए किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। लेफ्टिनेन्ट गवर्नरने फौरन श्री किचिनको लाहौरसे रवाना किया। हंटर समितिके सामने अपनी गवाहीमें श्री किचिन कहते हैं कि सड़कपर उन्हें बहुत सारे लोग मिले। लाहौरसे अमृतसरतक लगभग ३५ मील लम्बा रास्ता उन्होंने मोटरसे तय किया और उन्हें किसीने हाथ नहीं लगाया। यह १० अप्रैलको तीसरे पहर, लगभग ४ बजे की बात है। रातको ११ बजेके लगभग मेजर मैकडॉनल्डके नेतृत्वमें सैनिकोंसे भरी एक रेलगाड़ी आई। श्री किचिनने उन्हें बताया कि "स्थिति उनके बसके बाहर हो गई है और उन्हें ऐसे कदम उठाने चाहिए जो सैनिक दृष्टिसे आवश्यक हों।" अपनी गवाही में वे आगे कहते हैं कि "उन्होंने उन्हें यह सलाह दी कि सैनिकोंका एक पर्याप्त बड़ा दस्ता शहरमें भजें जो वहाँकी सूचना लाये या उन लोगोंको लाये जो मारे न गये हों। यह कर दिया गया। इसपर लॉर्ड हंटरने पूछा कि किसी सिविल मजिस्ट्रेटको क्यों नहीं भेजा गया?" श्री किचिनने उत्तर दिया:

मेरा खयाल था कि सैनिक टुकड़ीको लड़ते हुए आगे बढ़ना पड़ेगा, और सिविल मजिस्ट्रेटकी उपस्थितिसे एक ऐसी कार्रवाईमें उलझन पड़ती जो कि शुद्ध सैनिक कार्रवाई थी।...बचे हुए लोगोंको बाहर निकाल लाया गया और कोतवालीमें और भी सैनिक तैनात कर दिये गये। यह सब बिना किसी प्रतिरोध या लड़ाईके हो गया।