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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

टाउन हॉल, डाकखाना और मिशन हॉल जला दिये गये, और भगताँवाला रेलवे स्टेशनका भी कुछ हिस्सा फूँक दिया गया। चार्टर्ड बैंकपर भी हमला करनेकी कोशिश की गई, लेकिन इस बैंकके भारतीय कर्मचारियोंने स्थितिको बचा लिया और बैंकको कोई गम्भीर क्षति नहीं पहुँच पाई। इसी समय मिस शेरवुड[१] साइकिलपर कहीं जा रही थीं। उनपर भी हमला किया गया, किन्तु उनको उनकी एक भारतीय छात्राके पिताने बचा लिया। भीड़में निस्सन्देह कुछ बदमाश लोग भी थे, जिन्होंने मौका देखकर नेशनल बैंकके गोदामको लूटना शुरू कर दिया। यहाँ हम यह भी बता दें कि उसके बादसे अभीतक कुछ पुलिसवालोंको भी उनके पाससे लूटका माल बरामद होने के कारण गिरफ्तार किया जा चुका है। १० अप्रैलको शामके ५ बजेतक तोड़-फोड़ और लूटपाटका काम खत्म हो चुका था।

अमृतसरकी जनताको उनके प्रिय नेताओंका निर्वासन करके जिस तरह उत्तेजित किया गया वह अत्यन्त गम्भीर और अनावश्यक था। फिर जब निहत्थे लोगोंकी भीड़ शान्तिपूर्ण उद्देश्य से डिप्टी कमिश्नरके बँगलेकी ओर जा रही थी तब उसे आगे बढ़नेसे रोककर, और भीड़ द्वारा आगे बढ़नेका आग्रह करनेपर उसके ऊपर गोली चलाकर उसे और अधिक उत्तेजित किया गया। यहाँ इस तथ्यको दुहराने और इसपर जोर देनेकी जरूरत है कि ओवर-ब्रिजपर पहुँचने और गोली चलनेसे पहलेतक भीड़ने कोई हिंसात्मक काम नहीं किया था। यह कह सकना मुश्किल है कि अगर भीड़को डिप्टी कमिश्नरके बँगलेकी ओर जाने दिया गया होता, और वहाँ उसकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी गई होती, जिसकी कि काफी सम्भावना थी, तब उस हालतमें क्या होता। यह बहुत-कुछ इस बातपर निर्भर करता कि डिप्टी कमिश्नर भीड़के साथ कैसा व्यवहार करते। यह बात माननी होगी कि भीड़ हठ कर रही थी, और यदि अधिकारियोंको लगा कि भीड़ हिंसात्मक कार्रवाई करेगी, तो हम अधिकारियोंको भीड़की प्रगति रोकनेके लिए दोषी माननेको तैयार नहीं हैं। मार्शल लॉ आयोगके सामने दी गई गवाहियों, और लॉर्ड हंटरकी समितिके[२] सामने सरकारी पक्षकी ओरसे प्रस्तुत गवाहियों और जो साक्ष्य हमने एकत्र किये है उन सबको अध्ययन करने के बाद हम इस नतीजेपर पहुँचते हैं कि गोली चलानेका कतई कोई कारण मौजूद नहीं था। गोली चलानेसे पहले अधिकारियोंने बीचके उन उपायोंको बिलकुल आजमानेकी कोशिश नहीं की जिन्हें सामान्यतः सभी सभ्य देशों में काममें लाया जाता है। भीड़के नेताओंके साथ बातचीत करके उन्हें समझाने-बुझानेकी या बहलाने-फुसलानेकी कोई कोशिश नहीं की गई और न पहले मामूली शक्तिका प्रयोग करके भीड़को हटानेका ही प्रयत्न किया गया। जैसे ही भीड़ने जबरदस्ती आगे बढ़नेकी कोशिश की, बस सीधे गोली चलानेका हुक्म दे दिया गया। इस देशमें कार्यपालिकाके अधिकारियों और फौजका यह आम कायदा ही बन

  1. स्थानीय मिशन स्कूलमें पढ़ानेवाली एक अंग्रेज महिला।
  2. पंजाबके उपद्रवोंकी जाँचके लिए लॉर्ड हंटरकी अध्यक्षतामें यह समिति भारत सरकारने अक्तूबर १९१९ में नियुक्त की थी।