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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

भाग लेनेका फैसला किया था, इसलिए इस उत्सवका महत्त्व निस्सन्देह बहुत बढ़ गया था। रामनवमीका जुलूस बहुत बड़ा था, जिसमें मुसलमानोंने बहुत बड़ी संख्यामें भाग लिया। डा० सत्यपाल और डा० किचलूने अलग-अलग स्थानोंपर खड़े होकर जुलूसको देखा। इन दोनों नेताओंके निकटसे गुजरते वक्त जुलूसवालोंने उनकी जय-जयकारके नारे लगाये। अमृतसरके डिप्टी कमिश्नरने भी जुलूस देखा, और जब जुलूसके बैन्ड-बाजेवाले दस्ते उनके सामनेसे गुजरे तो उन्होंने "गॉड सेव द किंग" की धुन बजाई। इस अवसरपर भी इतने विशाल प्रदर्शनके बावजूद कोई दुःखद घटना या दुर्घटना नहीं हुई।

इस सारे सार्वजनिक प्रदर्शन और राष्ट्रीय चेतनाकी मुक्त अभिव्यक्तिको देखकर जनताकी आकांक्षाओंसे सहानुभूति रखनेवाले किसी भी कल्पनाशील शासकका हृदय खुशीसे भर गया होता। लेकिन सर माइकेल ओ'डायर यह सब देखकर क्रोधसे भर गये। उन्हें यह देखकर गुस्सा आया कि उनके इन आदेशोंके फलस्वरूप, जिनका जिक्र हम कर चुके हैं, जनता भयभीत होने की जगह और भी उद्धत हो गई थी और उसकी माँगे और मुखर हो गई थीं। अत: लगभग ठीक उसी समय जब कि यह जन-प्रदर्शन व्यवस्थित और बिलकुल नियमित रूपमें जारी था, पंजाब सरकारके सचिवालयमें एक आदेशका मसविदा तैयार किया जा रहा था, जिससे जनताकी शान्ति भंग तथा नष्ट होनेवाली थी, क्योंकि लेफ्टिनेन्ट गवर्नरने डा० किचलू और डा० सत्यपालको निर्वासित करनेका फैसला कर लिया था। यह आदेश अमृतसरमें ९ अप्रैलको काफी रात गये पहुँचा, और १० अप्रैलको डिप्टी कमिश्नरने डा० किचलू और डा० सत्यपालको बुलवाकर वह आदेश उनपर जारी किया, और एक मोटरमें बैठाकर उन्हें एक अज्ञात स्थानकी ओर भेज दिया। इसकी खबर सारे अमृतसरमें बिजलीकी तरह फैल गई। तत्काल एक भीड़ इकट्ठी हो गई। यह भीड़ मातम मनानेवालोंकी भीड़ थी। सभी नंगे सर थे, बहुत-से नंगे पैर भी थे, और किसीके हाथमें छड़ी वगैरह नहीं थी। ये लोग अपने प्रिय नेताओंकी रिहाईके लिए डिप्टी कमिश्नरसे प्रार्थना करने उसके बँगलेकी ओर जा रहे थे। यह जुलूस अमृतसरकी सभी मुख्य सड़कोंसे गुजरा-- नेशनल बैंक, टाउन हॉल और क्रिश्चियन मिशन हॉल, इन सभी इमारतोंके सामनेसे होते हुए आगे बढ़ा। ये इमारतें वही इमारतें थीं, जिन्हें थोड़े ही समय बाद भीड़के कुछ लोगोंके हाथों ध्वस्त हो जाना था। इस तरह जुलूस शान्तिपूर्वक आगे बढ़ रहा था, लेकिन रेलवेके ओवर-ब्रिजपर इसकी प्रगतिको वहाँ तैनात फौजी गारदने रोक दिया। भीड़ने रास्ता माँगा और कहा कि हम लोग फरियाद करनेके लिए डिप्टी कमिश्नरके बँगलेपर जाना चाहते हैं। उसने आगे बढ़नेकी कोशिश की और फौजी गारद थोड़ी दूर पीछे हट गई। भीड़ आगे बढ़ी, फौजी गारदने गोली चलाई जिससे कुछ लोग मरे और कुछ घायल हो गये। भीड़ पीछेको लौटी, लेकिन अब यह एक शान्तिपूर्ण भीड़ नहीं रह गई थी। अब यह ऐसी भीड़ थी, जिसे अपने नेताओंको रिहा करवाने की कोशिशोंमें नाकामयाब कर दिया गया था, और जो अब अपने बीच कुछ लोगोंके मारे जाने और घायल होनेके कारण क्षुब्ध हो उठी थी। ये क्रुद्ध