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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अतः सर माइकेल जो भी तरीका सोच सकते थे, उस हर तरीकेसे समस्त राजनीतिक चेतनाको कुचल डालनेके लिए कृतसंकल्प थे। वे लोगोंको कोंच-कोंचकर इतना उत्तेजित कर देनेको भी तैयार थे जिससे वे अपना आपा खो बैठे। किस प्रकार इसमें उन्हें आंशिक सफलता मिली, यह हम आगे देखेंगे।

मार्शल लॉ

भाग २: अमृतसर

अमृतसरको हम सबसे पहले लेंगे, क्योंकि कोंच-कोंचकर उत्तेजित करनेकी प्रक्रिया वहीं सम्पन्न हुई। महत्त्वकी दृष्टि से अमृतसरका लाहौरके बाद दूसरा नम्बर है। लेकिन कई दृष्टियोंसे वह लाहौरसे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसकी आबादी १,६०,००० है। यहाँ स्वर्ण-मन्दिर है जो सिखोंका सबसे बड़ा पूजा-स्थल है। पंजाबका सबसे बड़ा केन्द्र होने और स्वर्ण-मन्दिरके कारण यहाँ पंजाबके सभी भागोंसे, और बाहरसे भी यात्री और पर्यटक आते रहते हैं।

अप्रैलके मध्य में हिन्दुओंका नव-वर्ष आरम्भ होता है। उस दिन अमृतसरमें बहुत बड़ा पशु मेला भी लगता है। नव-वर्ष दिवसको बैसाखी कहते हैं, और यह दिवस धार्मिक और व्यापारिक दोनों ही महत्त्व रखता है। प्रतिवर्ष इस दिन यहाँ आसपासके और दूर-दूरके लोग बहुत बड़ी संख्यामें आते हैं। बैसाखीसे पहले रामनवमीका उत्सव मनाया जाता है।

अमृतसरमें ६ अप्रैलका दिन पूरी तरह मनाया गया; मुसलमानों, सिखों और अन्य सभी हिन्दुओंने उस दिन पूरी हड़ताल रखी। यह हड़ताल स्वतःस्फूर्त और ऐच्छिक थी। भीड़के व्यवहारमें आपत्ति करने लायक कोई चीज नहीं दिखाई दी। और ऐसी कोई घटना नहीं हुई, जिसपर खेद प्रकट किया जाता या जिसकी खास खबर दी जाती।

९ अप्रैलको रामनवमी थी। यह मुख्यतः हिन्दुओंका धार्मिक त्यौहार है। लेकिन इस बार इस अवसरका उपयोग हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए किया गया। उत्सवमें मुसलमानोंने आगे बढ़कर हिस्सा लिया। भाईचारा उत्पन्न करनेवाले इस उत्सवके आयोजकोंमें डा० किचलू और डा० सत्यपाल भी थे। इन दोनों नेताओंने अपनी सार्वजनिक सेवाओंके कारण बहुत पहले ही काफी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी।

डा० सैफुद्दीन किचलू एक मुसलमान बैरिस्टर हैं और उनकी वकालत बहुत अच्छी चलती है। वे कैम्ब्रिजके स्नातक हैं और मन्स्टरसे उन्हें डाक्टर आफ फिलासफीकी उपाधि प्राप्त हुई थी। वे अलीगढ़में भी पढ़ चुके हैं। उनकी आयु ३५ वर्ष है। वे विवाहित हैं और उनके दो बच्चे हैं। कई वर्षोंसे वे हिन्दू-मुस्लिम एकताके काममें लगे हैं।

डा० सत्यपाल हिन्दू हैं, जातिसे खत्री। वे पंजाब विश्वविद्यालयके बी० ए०, एम० बी० हैं। युद्धके दौरान वे अदनमें लेफ्टिनेन्ट, आई० एम० एस० के रूपमें किंग्स कमिशन पाकर एक वर्षतक रह चुके हैं। वे डा० किचलूके साथ सार्वजनिक काम करते रहे हैं। अमृतसर रेलवे स्टेशनपर भारतीयोंको प्लेटफार्म टिकट दिया जाना बन्द होनेपर