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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

सरकारको इतना आतंकित कर देनेका था कि वह उस कानूनके विरुद्ध निषेधाज्ञा जारी करानकी कोशिश करे। इसी योजनाके अनुसार सारे भारतमें, और विशेष रूपसे पंजाबमें, उक्त षड्यन्त्रकारियोंने, जिनमें अभियुक्त भी शामिल थे, ३० मार्चके दिन आम हड़तालकी घोषणा की, जिसके पीछे उनका मंशा अव्यवस्था उत्पन्न करना, देशके आर्थिक जीवनको ठप करना और सरकारके प्रति द्रोह और घृणाके भाव पैदा करना था।

इसके बाद कई सभाओंका एक मोटा ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें इस विवरणमें, "उपद्रवकारी मजमा" कहा गया है, और फिर दो अनुच्छेद हैं जिन्हें इस सरकारी प्रारूपकारकी ही भाषामें उद्धृत करना हमें जरूरी लगता है:

९ अप्रैलको, सरकारके विरुद्ध द्रोह और शत्रुभाव भड़कानेके आम षड्यन्त्रके अनुसार, जिस समय रामनवमीका जुलूस निकल रहा था, उस अवसरपर अभियुक्त रामभजदत्त, गोकुलचन्द, धर्मदास सूरी और दूनीचन्द तथा अन्य लोगोंने विधिवत् स्थापित सरकारके विरुद्ध हिन्दू और मुसलमानोंके भाईचारेको बढ़ावा दिया। १० अप्रैलको पंजाब सरकारने शान्ति और व्यवस्था कायम रखनेकी दृष्टिसे गांधी नामक एक षड्यन्त्रकारीको प्रान्तमें प्रवेश करनेसे रोक दिया और उसी दिन दो अन्य षड्यन्त्रकारियोंको, जिनके नाम सत्यपाल और किचलू हैं, अमृतसरसे निष्कासित करनेकी आज्ञा दी। शान्ति और व्यवस्था बनाये रखनेको दृष्टिसे उठाये गये सरकारके इन एहतियाती कदमोंको षड्यन्त्रकारियोंने सम्राट्के विरुद्ध युद्ध छेड़नेका एक सर बना लिया है।

हम इन अनुच्छेदोंको इसलिए उद्धृत कर रहे हैं कि जिससे हमने जो बातें कहीं हैं वे स्पष्ट हो जायें; अर्थात् यह कि हड़ताल, हड़तालसे पहले और उसके बाद होनेवाली सभाओं और हिन्दू-मुस्लिम भाईचारेको सरकारके लिए खतरा समझा गया। ऐसा भी नहीं है कि हड़ताल और हिन्दू-मुस्लिम भाईचारेके बारेमें ऐसी धारणा बादमें बनी। सर माइकेल ओ'डायर ७ अप्रैलको बिलकुल स्पष्ट शब्दोंमें अपने मनकी बात प्रकट कर चुके थे। उस दिनके उनके भाषणके अंश हम पहले ही उद्धृत कर चुके हैं। उन्होंने जालन्धरके बैरिस्टर माननीय रायजादा भगतरामसे भेंट की थी। उनसे भी सर माइकेलने हड़तालके विरुद्ध अपनी तीव्र भावना व्यक्त की थी, जैसा कि माननीय भगतराम द्वारा दिये गये बयानसे देखा जा सकता है। इस बयानमें रायजादा भगतराम कहते हैं:

(पंजाब विधान परिषद्की) बैठकके बाद मैं ड्राइंग रूममें लेफ्टिनेंट गवर्नरसे मिला। उन्होंने मुझसे पूछा कि जालन्धरमें कैसी हड़ताल हुई। मैंने उत्तर दिया कि हड़ताल पूरी हुई और किसी प्रकारकी गड़बड़ी नहीं हुई। सर माइकेलने मुझसे पूछा कि मेरी रायमें इसका कारण क्या था। मैंने उत्तर दिया, "मेरी समझमें इसका कारण श्री गांधीका आत्मबल था।" इसपर सर माइकेलने अपना मुक्का हिलाया और कहा, "रायजादा साहब याद रखिए, गांधीके आत्मबलसे भी बड़ी एक ताकत है।" (बयान ६५०)