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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिखाया है। हमने सत्याग्रहके प्रणेताके ही शब्दोंमें सत्याग्रहके सिद्धान्तोंका विश्लेषण प्रस्तुत किया है, और हमारी समझमें हमने यह बात काफी स्पष्ट रूपसे दिखला दी है कि ६ अप्रैलको मूर्तरूप ग्रहण करनेवाले रौलट अधिनियम-विरोधी आन्दोलनसे किसी प्रकारकी कोई हिंसा नहीं उत्पन्न हुई, और सत्याग्रहकी जैसी कल्पना उसके प्रणेताने की है तथा उसे जिस रूपमें उन्होंने प्रस्तुत किया है, उस रूपमें सत्याग्रह हिंसासे पूर्णत: मुक्त है। बल्कि सच तो यह है कि उसके प्रचार और जनता द्वारा उसकी स्वीकृतिसे शान्ति और जान-मालकी सुरक्षाके लिए अधिक अनुकूल स्थिति उत्पन्न होगी। हमने यह भी दिखाया है कि रौलट अधिनियमके विरुद्ध होनेवाले आन्दोलन और सत्याग्रह दोनोंने जनताको अपनी शक्तिका अनुभव करनेमें सहायता दी थी और उनमें स्फूर्तिका संचार किया था। सर माइकेल ओ'डायर जिस सरकारके प्रतीक थे वैसी सरकारके प्रति पंजाबकी जनताके मनमें कोई प्रेम-भाव नहीं था। वह उससे पूरी तरह असन्तुष्ट थी। यह असन्तोष मँहगाईके कारण और गहरा हो गया था। लोगोंको आशा थी कि युद्धके बाद हर तरहसे अच्छा समय आयेगा। लेकिन इसके विपरीत युद्धका अन्त होनेके साथ उनकी अपनी संकटपूर्ण स्थिति और स्पष्ट होकर सामने आ गई है। इस प्रकार जो असन्तोष उत्पन्न हुआ, वह खिलाफत आन्दोलनके कारण और जोर पकड़ गया। मुसलमानोंको ब्रिटिश सरकारके इरादोंकी तरफसे शक हो गया, और दरअसल ऐसे शकके लिए वाजिब कारण मौजूद थे।

गत अप्रैलकी घटनाओंको ठीकसे समझने के लिए ऊपर दिये गये तथ्योंको समझना जरूरी है। इन तथ्योंसे इनकार करना सम्भव नहीं है।

६ अप्रैलको पंजाबमें पूर्ण हड़ताल रही। पंजाबमें, और पंजाब ही क्या, सारे भारतमें यह एक अभूतपूर्व दृश्य था। उस दिन नेता और जनता एक व्यक्तिकी भाँति मिलकर काम करते प्रतीत होते थे। हिन्दुओं और मुसलमानोंमें पूरा भ्रातृ-भाव था। सारे देशमें रोलट अधिनियमका विरोध करते हुए प्रस्ताव पास किये गये और उसे रद करनेकी माँग की गई। ६ अप्रैलका प्रदर्शन जनताकी इच्छाकी शान्तिपूर्ण अभिव्यक्ति था।

किन्तु सर माइकेल ओ'डायरके लिए इसे सहन करना मुश्किल हो गया। उन्हें हड़ताल और हिन्दू-मुस्लिम एकता, दोनों ही चीजोंमें ब्रिटिश शासनके लिए खतरेकी गंध आई। उनके लिए यह एक ब्रिटेन-विरोधी गठबंधन था, जिसे किसी भी कीमतपर तोड़ना बहुत जरूरी था। यहाँतक कि लाहौरके नेताओंके विरुद्ध चलाये गये मुकदमे में भी उनके शान्तिपूर्ण कार्योंको बढ़ा-चढ़ाकर "षड्यंत्र और युद्ध छेड़ना" बताया गया। विशेष न्यायाधिकरण संयोजक मण्डल (कनवीनिंग अथॉरिटी) ने लाहौरके मामलेका जो संक्षिप्त विवरण तैयार किया उसमें कहा गया है:

वह कानून जिसे लोग आमतौरपर रौलट अधिनियमके नामसे जानते हैं, केन्द्रीय विधान परिषद् द्वारा १८ मार्च, १९१९को पास किया गया। इसपर पंजाबके बाहरके कुछ लोगोंने, जिनके साथ अभियुक्तोंका सम्बन्ध था, एक आम षड्यन्त्र रचा जिसका मंशा उग्न सभाओंका आयोजन करना, और सरकारके विरुद्ध जन-भावनाको भड़कानेके इरादेसे आम हड़ताल करवाना और इस प्रकार