पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२०७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७७
पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


अब हमारे लिए यह देखना ही बाकी रह जाता है कि पंजाबमें हत्या, आगजनी और लूटपाटकी जो घटनाएँ हुई उनके लिए सत्याग्रह जिम्मेदार था या नहीं। जैसा कि हम दिखा चुके हैं, सत्याग्रहके प्रचारका परिणाम किसी भी रूपमें हिंसात्मक नहीं हो सकता था, क्योंकि सत्याग्रह तो स्वयं ही हिंसाका विरोधी है। लेकिन सत्याग्रहके सविनय अवज्ञावाले रूपके प्रचारको आसानीसे गलत समझा या समझाया जा सकता है, और इसलिए सावधानी बरतते हुए ही ऐसा करना चाहिए। सविनय प्रतिरोधका समर्थन करते समय अधिकसे-अधिक सावधानी रखनेकी आवश्यकताको हम स्वीकार करते हैं। कानूनके लिए अनादरकी भावना पैदा करना आसान है, किन्तु राज्यके कानूनोंकी सविनय अर्थात् अहिंसात्मक अवज्ञा करके कष्ट-सहन करनेकी भावना उत्पन्न करना उतना आसान नहीं है। इसलिए सविनय प्रतिरोधका प्रचार वहीं किया जा सकता है जहाँ आत्म-पीड़नके लिए पहले ही से जमीन तैयार कर ली गई हो। हमने देखा कि श्री गांधीने बिना पर्याप्त तैयारीके बड़े पैमानेपर सामूहिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करनेकी अपनी गलतीको ईमानदारीके हाथ स्वीकार किया, जो हमारी रायमें बिलकुल ठीक भी था, और आन्दोलनको तत्काल स्थगित कर दिया।[१]

बहरहाल पंजाबमें सत्याग्रहके सविनय प्रतिरोधवाले हिस्सेको न तो सही ढंगसे समझा गया और न हृदयंगम किया गया, और उसपर अमल तो और भी नहीं किया गया। यों हड़तालका सविनय प्रतिरोधसे कोई सम्बन्ध नहीं है। हड़ताल अगर स्वेच्छासे की गई हो, हिंसासे पूरी तरह मुक्त हो, और उसका उद्देश्य गलती करनेवाले के विरुद्ध दुर्भाव व्यक्त करना नहीं बल्कि उसके गलत कामोंसे विरोध प्रकट करना हो तो ऐसी हड़ताल सत्याग्रहका एक अंग हो सकती है। फिर, भारतमें हड़ताल बहुत पुराना अस्त्र है। यहाँ इसका प्रयोग लोग ठीक वैसी ही परिस्थितियोंमें करते आये हैं जिन परिस्थितियोंमें इसका प्रयोग अप्रैल माहमें पंजाबमें किया गया था। इसलिए भीड़ने जो भी ज्यादतियाँ कीं, उनसे न तो सत्याग्रहका कोई सम्बन्ध था और न हड़तालका। जिन कारणोंसे वैसी घटनाएँ हुई उनपर आगेके पृष्ठोंमें विचार किया जायगा।

अध्याय ५

मार्शल लॉ

भाग १: सामान्य

शिक्षित भारतीयों के प्रति सर माइकेल ओ'डायरका व्यवहार कैसा था और फौजी भरतीके सिलसिलेमें उनके तरीके कैसे थे, इस दृष्टिसे हम उनके प्रशासनपर विचार कर चुके हैं। हमने यह दिखानेकी कोशिश की है कि किस प्रकार सर माइकेल ओ'डायरने सभी वर्गोंके पंजाबियोंको अपनेसे विमुख कर दिया था। हमने रौलट अधिनियम और उसके परिणामोंके बारेमें भी काफी विस्तारसे म बताया है। इस अधिनियमको रद करानके लिए भारत-भरमें जो व्यापक आन्दोलन हुआ, उसका स्वरूप कैसा था, यह भी हमने

  1. जुलाई १९१९ में
१७-१२