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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

जानेके बाद भी आत्मा अक्षुण्ण बनी रहती है, इसीलिए वह वर्तमान शरीरके रहते ही सत्य की विजय होते देखने के लिए अधीर नहीं होता। सच तो यह है कि सत्याग्रही उस समय जिस सत्यको अभिव्यक्त करता है, उस सत्यको विपक्षी भी देखे, इसका प्रयत्न करते हुए मर जानेकी क्षमतामें ही विजय निहित है।

और चूँकि सत्याग्रही विपक्षीको कभी पीड़ा नहीं पहुँचाता, और सदैव विनय-भरे तर्क द्वारा उसकी विवेकबुद्धिको, या आत्मत्याग द्वारा उसके हृदयको छूनेकी कोशिश करता है, इसलिए सत्याग्रह दोहरा कल्याणप्रद है--एक ओर तो जो व्यक्ति सत्याग्रह करता है, यह उसका कल्याण करता है और दूसरी ओर यह जिसके विरुद्ध किया जाता है, उसका भी कल्याण करता है।

तथापि यह आपत्ति की जाती रही है कि सत्याग्रहकी जो हमारी कल्पना है वैसे सत्याग्रहका पालन कुछ गिने-चुने लोग ही कर सकते हैं। मेरा अनुभव इससे भिन्न बात सिद्ध करता है। एक बार इसके दो सरल सिद्धान्त--निष्ठा और स्वयं कष्ट सहकर सत्यपर आग्रह--समझ लिये जायें, फिर तो उसका पालन कोई भी कर सकता है। इसपर अमल कर सकना उतना ही कठिन या आसान है जितना किसी भी अन्य सद्गुणपर। सत्याग्रहपर अमल करनेके लिए उसका पूरा दर्शन समझना उसी तरह अनावश्यक है, जैसे कि मद्य-त्याग करनेके लिए उसका दर्शन जानना जरूरी नहीं है।

आखिरकार, जिसको सत्य जैसा दिखे उस सत्यपर आग्रह करनेकी आवश्यकतासे तो कोई इनकार नहीं ही करता। और यह समझना अत्यन्त सरल है कि पशुबलसे अपने विरोधीको भी उस सत्यको स्वीकार करनेके लिए विवश करना भद्दी बात है। दूसरी ओर यदि तर्कसे असत्यका अहसास नहीं करवाया जा सकता इसलिए उसे स्वीकार कर लिया जाए--यह तो और भी लज्जाजनक उस हालत में एकमात्र सच्चा और सम्मानजनक रास्ता यही है कि जान चली जाये तो भी उसे स्वीकार न किया जाये। यदि संसारसे कभी गलतियोंको बिलकुल दूर किया जा सकता है तो केवल तभी दूर किया जा सकता है। जो गलती या भूल अन्तःकरणको चोट पहुँचाती हो उसके साथ कोई समझौता नहीं हो सकता।

किन्तु राजनीतिक क्षेत्रमें जनताकी ओरसे यह संघर्ष चलाये जानेका मतलब है मुख्यतः अन्यायपूर्ण कानून-रूपी गलतियोंका विरोध। जब याचिकाएँ आदि देकर आप कानून बनानेवालेको उसकी गलतीका अनुभव न करा सकें, तब यदि आप इस अन्यायपूर्ण कानूनको स्वीकार न करना चाहते हों तो आपके सामने एक ही रास्ता रह जाता है और वह यह कि आप स्वयं कष्ट-सहन करके, अर्थात् कानून की अवज्ञाका दण्ड आगे बढ़कर स्वीकार करके, उसे उस कानूनको वापस लेनके लिए मजबूर कर दें। इसीलिए जनताको सत्याग्रह ज्यादातर सविनय अवज्ञा या सविनय प्रतिरोधके रूपमें दिखता है। कानूनकी यह अवज्ञा विनयपूर्ण इसलिए है कि वह अपराधमूलक नहीं है।