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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट


भाग ४ उन व्यक्तियोंके ऊपर लागू होता है जिनसे भारत सुरक्षा अधिनियमके अन्तर्गत पहले ही निपटा जा चुका है और जिन्हें यह सहज ही भाग २ की व्यवस्थाओं- के अन्तर्गत रख देता है, और उनपर भी जो लोग बंगाल राजकीय बन्दी विनियमकी व्यवस्थाओंके अन्तर्गत कैदमें हैं और जिन्हें यह भाग ३ के अन्तर्गत ला देता है। यह भारत प्रवेश अध्यादेश (इनग्रेस इनटू इंडिया आर्डिनेंस) से प्रभावित लोगोंको भी इस अध्यादेश[१] की समाप्तिपर भाग २ की व्यवस्थाओंके अधीन ले जाता है।

अगर प्रभावित क्षेत्रके सम्बन्धमें भाग १, २ और ३ के अन्तर्गत जारी की गई अधिसूचनाएँ रद हो जायें तो भाग ५ में व्यवस्था है कि इन अधिसूचनाओंके रद किये जानेके बावजूद "इस अधिनियमके अधीन किया जानेवाला कोई भी मुकदमा, जाँच-पड़ताल या आदेश जारी रखा जा सकता है या लागू किया जा सकता है और ऐसी किसी जाँच-पड़तालके पूरी हो जानेपर कोई भी आदेश, जो अन्यथा दिया जा सकता था, दिया जा सकता है और उसे इस तरह तामील किया जा सकता है, मानो ऐसी अधिसूचना कभी रद ही नहीं की गई।" यह, ब्रिटिश भारतमें जहाँ भाग ३ लागू नहीं होता वहाँ भी भाग ३ से प्रभावित लोगोंकी गिरफ्तारीकी सत्ता देता है और फिर इस तरह गिरफ्तार किये गये ऐसे व्यक्तिपर, जैसी भाग ३ में व्यवस्था है, उसी प्रकार कार्रवाई की जायेगी, मानो जहाँतक उस व्यक्तिका सम्बन्ध है उसपर सम्पूर्ण ब्रिटिश भारतमें भाग ३ लागू होता हो।

खण्ड ४२ इस बातकी व्यवस्था करता है कि [रौलट ] अधिनियमके अन्तर्गत जारी किये गये आदेशोंपर किसी भी अदालतमें कोई आपत्ति नहीं उठाई जायगी और इस अधिनियमके अन्तर्गत शुद्ध मतिसे किये गये किसी भी कार्यके लिए किसी व्यक्तिके खिलाफ किसी प्रकारको नालिश, मुकदमा या अदालती कार्रवाई नहीं की जा सकेगी। अन्तिम खण्ड व्यवस्था करता है कि अधिनियम द्वारा प्रदत्त सत्तासे स्थानीय सरकारको प्राप्त अन्य किन्हीं भी अधिकारोंमें कोई कमी नहीं होगी, बल्कि यह उन अधिकारोंमें सम्मिलित मानी जायेगी।

यह है वह अधिनियम जिसके कारण भारतमें पहली बार ऐसा भारी तूफान उठ खड़ा हुआ और [जिसके सम्बन्धमें] सरकारकी ओरसे ऐसा दावा किया जाता है कि इस विधेयकके बारेमें तथ्योंको गलत ढंगसे और बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित किया गया है। हमारा विश्वास है कि यह अधिनियम ऐसा है ही नहीं कि जनतामें इसके गलत प्रचारकी गुंजाइश हो। हाँ, सरकारकी ओरसे इसे अलबत्ता गलत रूप में प्रस्तुत किया गया है। जैसे अतिरंजनकी शिकायत की गई है उसका एक विशेष नमूना यह

मुहावरा है: "न अपील, न दलील, न वकील," जिसके अर्थ है कि न अपील हो सकती है, न दलीलकी गुंजाइश है और न वकील ही किया जा सकता है। हमारी रायमें यदि जनताकी ओरसे की गई विधेयककी सबसे खराब व्याख्या यही है तो इसमें विधेयककी बुराइयोंको कम करके ही बताया गया है, बढ़ाकर नहीं। हमारी

  1. यह अध्यादेश १९१४ में पास किया गया था और इसका उद्देश्य भारतमें प्रवेश करनेवाले किसी भी व्यक्तिको स्वतन्त्रता प्रतिबन्धित करना था।