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संम्पूण गांधी वाङ्मय


खण्ड २७ में तहकीकात-मण्डलकी रिपोर्टपर आगे की कार्रवाई किस प्रकार हो, इसकी व्यवस्था की गई है। इससे पता चलता है कि मण्डलको रिपोर्टसे सरकार किसी भी प्रकार बँधी हुई नहीं है। इसी खण्डमें सरकारको यह अधिकार दिया गया है कि वह मूल आदेश में नियत अवधिको बारह महीने और बढ़ा सकती है। और अन्तमें तहकीकात-मण्डलमें "तीन सदस्य" होंगे, "जिनमें से दो सदस्य कमसे-कम जिला और सेशन्स जजके स्तरके लोग होंगे और तीसरा सदस्य कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो भारतमें सरकारी सेवामें न हो।"

यदि भाग २ भाग १ के मुकाबिले ज्यादा खराब है तो, प्रस्तावकके ही शब्दोंमें "भाग ३ और अधिक सख्त है।" आश्वासनके तौरपर सर विलियम विन्सेंट आगे कहते हैं:

लेकिन यह [भाग ३] तभी प्रभावी होगा जब सपरिषद् गवर्नर-जनरल सन्तुष्ट हों कि योजनाबद्ध अपराध इस हदतक किये गये हैं या किये जा रहे हैं कि उनसे सार्वजनिक सुरक्षाको खतरा उत्पन्न हो गया है।

भाग १ तब प्रभावी होता है जब योजनाबद्ध अपराध इतने बड़े पैमानेपर किये जा रहे हों कि सार्वजनिक सुरक्षाके हित में ऐसे अपराधोंके तुर्त-फुर्त मुकदमे करना वांछनीय हो गया हो। भाग ३ तब प्रभावी होता है जब ऐसे अपराध इतने बड़े पैमानेपर किये जा रहे हों कि सार्वजनिक सुरक्षाको खतरा उत्पन्न हो गया हो। इस प्रकार, इन दोनों स्थितियोंको अलग करनेवाली रेखा बहुत बारीक है, और इसके बावजूद भाग ३, खण्ड ३४, स्थानीय सरकारको अधिकार देता है कि वह किसी संदिग्ध व्यक्तिका मामला किसी न्याय अधिकारीके सामने ले आये, और उस अधिकारीकी रायपर विचार करने के बाद वह ऐसा कोई भी आदेश जारी कर दे जिसकी सत्ता उसे भाग २ में खण्ड २२ के अन्तर्गत दी गई है, और इससे भी आगे, वह किसी भी संदिग्ध व्यक्तिको बिना वारंट गिरफ्तार करने और जैसा उचित समझे वैसी स्थितिमें और उन प्रतिबन्धोंके साथ उसे नजरबन्द रखनेका आदेश दे लेकिन वह सजायाफ्ता कैदियोंके लिए निश्चित किए गए ढंगकी नजरबन्दी न हो। वह अपने आदेशमें उल्लिखित स्थानकी तलाशीका निर्देश भी दे सकती है। फिर जब आदेश जारी हो जायें, उसके बाद अपनाया जानेवाला रास्ता वही होगा जैसा कि भाग २ के अन्तर्गत है, और इस प्रकार गिरफ्तार व्यक्तिको तहकीकात-मण्डल द्वारा तथाकथित जाँच-पड़ताल करनेके बाद बिना उचित मुकदमा या सुनवाईके दो वर्षतक नजरबन्द रखा जा सकता है। और जब यह ध्यान आता है कि यह अधिनियम इसलिए नहीं पास किया गया है कि यदा-कदा इक्के-दुक्के संदिग्ध व्यक्तिको नजरबन्द किया जाये, बल्कि इसकी रचना जानबूझकर इसलिए की गई है कि परेशानी और उत्तेजनाके मौकोंपर बहुत बड़ी संख्या में लोगोंको बन्द किया जाये, तब हमारे लिए एक ऐसे शासनकी कल्पना करना कठिन नहीं होगा जिसमें कानून और व्यवस्थाके बजाय संगठित आतंक और अव्यवस्था या छद्मरूपमें फौजी कानूनका साम्राज्य हो।