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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट

लगभग सभी मामलोंमें उनकी झकके कारण की गई अदालती कार्रवाई और ऐसे ही अत्याचारके शिकार हो जाते हैं।

अब हम सुनियोजित ढंगके अपराधोंमें से कुछ-एकपर नजर डालें और देखें कि वे आखिर है क्या? इनमें राजद्रोह करना तो एक अत्यन्त बारीक कानूनी सवाल है; घातक अस्त्रोंसे लैस होकर दंगा करना; विभिन्न वर्गोंमें शत्रुता उत्पन्न करना; खतरनाक हथियारोंसे गंभीर चोट पहुँचाना; जबरदस्ती धन-सम्पत्ति छीनने या गैर-कानूनी कामके लिए मजबूर करने के उद्देश्य से चोट पहुँचाना; लूट-पाट या डकैती आदि करनेकी नीयतसे किसी व्यक्तिको शारीरिक क्षति पहुँचानेका भय दिखाना; आदि शामिल हैं। इस प्रकार यदि एक बार मनमें यह सन्देह जम-भर जाये कि किसी विप्लववादी आन्दोलनका कहीं कोई अस्तित्व है तो फिर किसी सरकारी कानूनकी जोरदार आलोचना, कोई मजहबी दंगा, हिन्दू-मुस्लिम झगड़ा, निजी स्वार्थवश जबरदस्ती कोई जायदाद या माल हथियाना या पेशेके तौरपर की गई डकैती आदि सभी काम ऐसे आन्दोलनसे सम्बन्धित बताये जा सकते हैं।

और यह तुर्त-फुर्त मुकदमा किस प्रकारका होगा? हम उसे विधेयकके प्रस्तावकके शब्दों में ही देते हैं। ये मुकदमे "बिना अपराध-आरोपणके, बिना अपीलके अधिकारके गुप्त रूपसे और तेजीके साथ" निबटाये जायेंगे। मुकदमेकी पूरी या आंशिक सुनवाईके लिए अदालत प्रान्तमें जिस स्थानपर वांछनीय समझे वहाँ बैठ सकती है, और एडवोकेट-जनरलके कहनेपर उच्च न्यायालय जहाँ सामान्यतः बैठता है, उससे भिन्न स्थानपर बैठ सकता है।

खण्ड ७ में कहा गया है कि दण्ड प्रक्रिया संहिताकी इस अधिनियमके भाग १ से जिस हदतक विसंगति होगी, उस हदतक वह इस अधिनियमके अन्तर्गत चलाये गये मुकदमोंपर लागू नहीं होगी। खण्ड ८ के द्वारा, इस प्रकारके जिन मुकदमोंमें मृत्यु-दण्ड दिया जाये, उनकी प्रक्रिया भी संक्षिप्त करके वैसी ही बना दी गई है जैसी प्रक्रिया "मजिस्ट्रेट द्वारा वारंटके मुकदमोंकी सुनवाईमें" अपनाई जाती है। अभियुक्तको केवल एक बार मुहलत देनेका अधिकार दिया गया है, और सो भी ज्यादासे-ज्यादा १४ दिनोंके लिए। खण्ड १८ द्वारा साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस ऐक्ट) के दो सबसे महत्त्वपूर्ण खण्डोंको बरतरफ कर दिया गया है। भारतीय साक्ष्य अधिनियमके खण्ड ३२ और ३३ में अन्य बातोंके साथ-साथ यह व्यवस्था भी की गई है कि मृत गवाहके बयानको केवल तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब वह बयान उस गवाहके आर्थिक हितोंके विरुद्ध हो और उसपर पहले ही जिरह हो चुकी हो। यदि मजिस्ट्रेट के सामने बयान देनेवाला कोई व्यक्ति मर जाये या लापता हो जाये, या गवाही देने में असमर्थ हो और अदालतको सन्तोष हो कि उक्त गवाहको मृत्यु, उसका लापता हो जाना या उसकी असमर्थता अभियुक्तके हितमें है, तो रौलट अधिनियमके खण्ड १८ के अनुसार उक्त दोनों खण्डोंमें दी गई सुरक्षाएँ बिलकुल बरतरफ कर दी गई है। यह ऐसा खण्ड है जिसके बलपर न्यायका गला घोटा जा सकता है। किसी अदालतके लिए यह जान सकना अत्यन्त कठिन काम है कि किसी गवाहकी मृत्यु या उसके लापता होने या उसके