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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अधिनियममें ४३ खण्ड है और वह पाँच भागों में विभाजित हैं। अधिनियमकी प्रस्तावना स्वयंमें बड़ी दिलचस्प है। उसमें लिखा है:

यह वांछनीय है कि साधारण फौजदारी कानूनके पूरकके रूपमें अतिरिक्त व्यवस्था की जाये और अराजकतावादी तथा विप्लववादी आन्दोलनोंका मुकाबला करने के लिए सरकार संकटकालीन अधिकारोंका प्रयोग कर सके।

यह अधिनियम सम्पूर्ण ब्रिटिश भारतपर लागू होता है। प्रथम भागमें सपरिषद्ग वर्नर-जनरलको यह अधिकार दिया गया है कि यदि वे समझें कि ब्रिटिश भारतके किसी भागमें अराजकतावादी अथवा विप्लववादी आन्दोलनोंको बढ़ावा मिल रहा है, और ऐसे आन्दोलनोंसे सम्बन्ध रखनेवाले सुनियोजित ढंगके अपराध इतने अधिक हो रहे है कि सार्वजनिक सुरक्षाके हितमें ऐसे अपराधोंके बारे में तुर्त-फुर्त मुकदमा चलाकर, उनका निपटारा करना वांछनीय हो गया है, तो वे [सपरिषद् गवर्नर जनरल] इस आशयकी घोषणा कर सकते हैं; और इसके साथ ही [विधेयकके] प्रथम भागकी व्यवस्थाएँ विज्ञप्तिमें उल्लखित क्षेत्र-विशेषके ऊपर लागू हो जायेंगी। इस कानूनके पक्षधर हालाँकि स्वीकार करते हैं कि इसके जरिये कार्यपालिकाको बहुत अधिक सत्ता दी गई है, लेकिन उनका कहना है कि इससे कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता, क्योंकि इसका उपयोग केवल तभी होगा जब सपरिषद् गवर्नर जनरल-जैसे उच्चाधिकारीको सन्तोष हो जायेगा कि अराजकतावादी अथवा विप्लववादी आन्दोलनों को बढ़ावा दिया जा रहा है, और उन आन्दोलनोंसे सम्बन्ध रखनेवाले सुनियोजित ढंगके अपराध इस हदतक होने लगे हैं कि न्यायके दुरुपयोगके विरुद्ध जो सामान्य सुरक्षाओंकी व्यवस्था है, उन्हें उठा लेना चाहिए। आइए, देखें कि इस उच्चाधिकारीको सामान्यत: किस प्रकार इस बातका सन्तोष हो गया है कि सचमुच ऐसी स्थिति मौजूद है। शुरूआत पुलिसके सबसे अदना कर्मचारीके जरिये होती है जिसकी दिलचस्पी अक्सर अपराधोंकी स्थितिको बढ़ा-चढ़ाकर बताने में होती है, जो अपने खेदजनक अज्ञानके कारण अक्सर प्रस्तुत तथ्योंको ठीक-ठीक समझ नहीं पाता, और जो आमतौरपर भ्रष्टाचारसे मुक्त नहीं होता। वह अपन वरिष्ठ अफसरको सूचित करता है कि एक विप्लववादी आन्दोलन संगठित किया जा रहा है, और इस आन्दोलनके सिलसिले में अपराध किये जा रहे हैं। वह वरिष्ठ अधिकारी तहकीकात करता है। वह सन्तुष्ट हो जाता है, और अगर सन्तुष्ट न हो तो उक्त कान्स्टेबल और सबूत प्रस्तुत करता है, भले ही वे फर्जी हों, और इस प्रकार वह रिपोर्ट जो मूलतः ही दूषित हो, या जिसका शायद कोई महत्त्व न हो, ऊपर बढ़ती जाती है और ज्यों-ज्यों वह ऊपर जाती है त्यों-त्यों उसका महत्त्व बढ़ता चला जाता है और अन्तमें उसके बलपर सपरिषद् गवर्नर जनरल एक घोषणा करके उस रिपोर्टको ऐसा महत्त्व प्रदान कर देते हैं जिसके वह सर्वथा अनुपयुक्त है। पंजाबकी घटनाओंको देखने से हमारा अभिप्राय बिलकुल स्पष्ट हो जायेगा। यह भी स्पष्ट हो जायेगा कि किस प्रकार महज अफवाहों या सन्देहोंने बढ़ते-बढ़ते क्रान्तिकारी आन्दोलनोंका ठोस रूप ग्रहण कर लिया, और किस प्रकार बिलकुल निर्दोष व्यक्ति भी कभी-कभी अधिकारियोंकी दुष्टता, और