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पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट
माननीय श्री मजहरुल हक माननीय सर गॉडफ्रे फैल
{{{1}}} खान बहादुर मियाँ मुहम्मद शफी {{{1}}} श्री एफ॰ सी॰ रोज़
{{{1}}} खान जुल्फिकार अली खाँ {{{1}}} श्री सी॰ एच॰ केस्टीवेन
{{{1}}} श्री जी॰ एस॰ खापर्डे {{{1}}} श्री डी॰ एस॰ ब्रे
{{{1}}} राय बी॰ डी॰ शुक्ल बहादुर {{{1}}} लेफ्टिनेन्ट कर्नल आर॰ ई॰ हॉलैंड
{{{1}}} श्री के॰ के॰ चन्दा {{{1}}} सर्जन-जनरल डब्ल्यू॰ आर॰ एडवर्ड्स
{{{1}}} श्री मींग बाह टू {{{1}}} श्री जी० आर० क्लार्क
  {{{1}}} ए॰ पी॰ मुडीमैन
  {{{1}}} श्री सी॰ ए॰ बेरन
  {{{1}}} श्री पी॰ एल॰ मूअर
  {{{1}}} श्री एम॰ एन॰ हाँग
  {{{1}}} श्री टी॰ इमर्सन
  {{{1}}} श्री ई॰ एच॰ सी॰ वाल्श
  {{{1}}} श्री सी॰ ए॰ किन्केड
  {{{1}}}सर जॉन डोनाल्ड
  {{{1}}} श्री पी॰ जे॰ फैगन
  {{{1}}} श्री जे॰ टी॰ मार्टिन
  {{{1}}} श्री डब्ल्यू॰ जे॰ रीड
  {{{1}}} श्री डब्ल्यू॰ एफ॰ पाइस
  {{{1}}}श्री एच॰ माँक्रीफ स्मिथ

इस विधेयक के लिए जिम्मेदार सदस्यने इसमें कुछ ऐसे मामूली परिवर्तनोंका सुझाव स्वीकार कर लिया, जिनसे विधेयकके उद्देश्य और उसकी व्याप्तिपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, और इस प्रकार यह विधेयक १८ मार्चको अन्तिम रूपसे पास हो गया।[१] इसके परिणामस्वरूप तीन उल्लेखनीय व्यक्तियों—पंडित मदनमोहन मालवीय, श्री मजहरुल हक और श्री एम॰ ए॰ जिन्ना—ने विधान परिषद् से त्यागपत्र दे दिया।

अब हम रौलट अधिनियमकी व्यवस्थाओंपर सरसरी नजर डालकर देखेंगे कि इस अधिनियमके विरुद्ध जो देशव्यापी और अभूतपूर्व आन्दोलन हुआ, वह उचित था या नहीं।

मूलतः यह कानून एक स्थायी कानून बननेवाला था, किन्तु प्रवर समिति में एक संशोधन स्वीकार किया गया जिसमें इसकी अवधि युद्ध समाप्ति के बादसे तीन वर्ष नियत की गई। हमारे विचारसे इस अवधि निर्धारणके सिद्धान्तके आधारपर इस अधिनियमका विरोध करनेके सवालपर कोई असर नहीं पड़ता।

  1. मार्च १९१९ में। गांधीजी दिल्लीमें केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभामें इस विधेयकपर होनेवाली बहसके दौरान केवल एक बार वहाँ उपस्थित थे। इस एक अवसरको छोड़कर वे केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभाकी कार्रवाई सुनने कभी नहीं गये।